चला दगडियों होरी खेलुला
बेप्रीत कु कालु रंग बगै ओला
लक धक बसंती बयार का दगडी
प्रेम कु नयुं रंग लगोला
सुख दुख बांटी की रोला
अमानुष्यता की होरी कु दहन करोला
आज ज़माना का दगडी
हमारा त्यौहार बद्लिगे
रीती बदलिगे रिवाज बद्लिगे
बद्लिगे लुकों की प्रीत
ओपचारिकता का भोंड़ रंग लगिगे मुखडीयों मा
चला ये रंग बगोला
चौक चौक , देरी देरी
ढोल दमो का दगडी नाचुला
अपना घोर गाँव तें गोकुल बणोला
२७ मार्च २०१३
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