अपने हिस्से के
मुट्ठी भर मेवों से
तीन चौथाई बचा के
रखता था अजय
हर रोज
ताकि छः आठ महिने में
बन सके दो-चार किलो,
जब उसे छुट्टी मिलती
ले जाता था
पीठ में लाद
रम की बोतलों के बीच छुपाकर घर,
माँ खुश-ख़ुशी
पूरे गाँव में पेणु बाँटती थी
लैंची चणों के साथ,
गाँव बाहें भरके
दुलार प्रेम आशीष देता था
सरहद पर
अपने अजय के विजय होने का,
था एक समय,
है एक समय
अजय वैसे ही बचाता है
अपने हिस्से के मेवों को
वैसे ही छुपाते लाता है घर
पर
अब ना माँ को पता चलता
ना ही गाँव को
क्योंकि
आज का अजय
गाँव नहीं शहर में
रहता है.
पेणु - शुभ अवसर पर घर-घरों बांटे जाने वाला मिठाई या पकवान.
@ बलबीर राणा 'अडिग'
https://adigshabdonkapehara.blogspot.com
2 टिप्पणियां:
🙏🌹 , अडिग साब ,, वाह , एक अहसास पैदा के गया
धन्यवाद भुला सते
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