शिक्षित क्या हुए कि घरानों में बंट गए,
एक छत वाले अलग मकानों में बंट गए।
विकास में यूँ उड़े गाँव के तमाम पक्षियां,
शहरों को गये और विरानों में बंट गए।
जब चूजे थे एक घोंसले में चहकते थे,
बड़े क्या हुए कि बियाबानों में बंट गए।
जब तक कुंवारे थे घुघते साथ चुगते थे,
घुघती आई कि, अंदर खानों में बंट गए।
ईमानदारी से भौंक रहे थे कुत्ते गलियों में,
हड्डी मिली कि सारे बेईमानों में बंट गए।
कल तक सारी बस्ती एकजुट थी अडिग,
चुनाव आया, नेताओं की जुबानों में बंट गए।
बियाबान - जंगल
घुघता - पहाड़ी पक्षी
@ बलबीर राणा 'अडिग'
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