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शुक्रवार, 1 मार्च 2024

गजल




सबकी अपनी-अपनी परेशानियाँ हैं ,
कुछ की हकीकत कुछ की जुबानियाँ हैं ।

इन उपत्यकाओं पर जो पगडंडियाँ देख रहे हो,
ये असंख्य बटोहियों की निशानियाँ हैं ।

हर मंजिल, तरक्की, ठाट-बाट की नीव पर,
किसी के हाथों के छाले और पैरों की बिवाईयाँ हैं।

पहाड़ के सीने पर जो ये मोहक गाँव खेत दिख रहे हैं,
यह हमारे पुरुखों की जीवंत कहानियाँ हैं।

शीत घाम बरखा सब प्रकृति की परीक्षाएं है,
डरना नहीं शिशिर के बाद बसंत की रवानियाँ हैं।

ये सफेदी, झुर्रियाँ, बलय जो देख रहा अडिग
ये किसी के लिए खपी जवानी की गवाहियाँ हैं।


©® बलबीर सिंह राणा 'अडिग'

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