Pages

शनिवार, 9 मार्च 2024

चिन्तन





 मित्रो जीवन में जानकारी लेना और अमल में लाना दो विपरीत धाराओं का मिलकर प्रकाश रूपी सफलता प्राप्त होना जैसा है। लेकिन इसे सभी लोग प्राप्त नहीं कर सकते हैं कारण या तो जानकारी का ना होना या जानकारी होने के बाबजूद भी अमल में न लाना। ध्यान रखने वाली बात है कि या तो जानों या तो मानो, अगर हम जानते भी नहीं और मानते भी नहीं तो फिर जीवन का सामाजिकता के साथ समावेशी ढंग से आगे बढ़ना आसान नहीं होता।

वर्तमान युग सूचनाक्रांति और तकनिकी का युग है। तकनिकी से जीवन जितना आसान हुआ इसके विपरीत भी उतना ही सत्य है। कई जागरूक लोग जीवन से जुड़े तमाम जानकारियों को जुटाते हैं और कुछ लोग उसे औरों तक पहुंचाने में मदद करते है। इसमें धर्म संस्कृति इतिहास की सारी बातें शामिल हैं।

इसके साथ ये भी जनना जरुरी है कि वर्तमान में सोशियल मिडिया जहाँ एक तरफ भ्रामकता से भरा पड़ा है वहीं सत्य जानकारियों से भी पटा है, सच और झूठ पहचानना आम इंशान के लिए एक चुनौती है। सोशियल मिडिया आम जागरूकता के साथ झूठ फ्रॉड और भ्रमकता में भी कोर कसर नहीं छोड़ रहा है।

 दगड़्यो जीवन में महत्व ये नहीं रखता कि आप कितने जानकार हो, महत्व ये रखता कि आप कितना चरिथार्त करते हो। चरिथार्त 

के परिपेक्ष्य में हम सनातनियों की शिथिलता का सबसे बड़ा कारण, मुखमुल्याज होना, डर, मेरा तो क्या वाला नजरिया, और थोता व खोटा सैक्यूलिरिज्मवाद जो दशकों से हमारे रगों में घोला गया। 2014 से जब एक राष्ट्रवादी सरकार भारत में है, सनातन हित और वर्चस्व हेतु कई फैसले हुए हैं और आगे भी जारी है। सच कहूँ पाँच दशक पर पहुँचने वाले अपने जीवन काल में पहली बार ये आभास कर रहा हूँ कि हम भी कुछ हैं, हमारा भी कोई है।  लगभग विखरता टूटता सनातन एक बार फिर अपने युग में आता नजर आ रहा है और यह यात्रा अनवरत जारी रहे इसमें हम सभी सनातनियों को अपना गिलहरी योगदान देना जरुरी ही नहीं अपितु बहुत जरुरी है ।

मित्रो आपका ध्यान एक और विशेष बात पर आकर्षित करना चाहता हूँ कि देश आजादी के बाद एक समुदाय द्वारा अपने सभी जेहादों के साथ एक लघु उद्योग जेहाद की भी शुरुवात अंदर ही अंदर की गई और इसमें वे सौ फीसदी सफल भी हो चुके हैं। यह योजना अंदर ही अंदर अमल में लायी गई तथाकथित उदारवादियों के द्वारा एक तरफ हमारे कामगारों को दलित बंचित बोल आरक्षण के लॉलीपॉप में उलझाया गया दूसरी तरफ एक समुदाय ने सारे छोटे बड़े कामों पर कब्ज़ा कर लिया। अब हमें अपने ये रोजमर्रा की जरुरी सेवाओं के काम करने में हिचक और शर्म आने लगी है। किसने कहा नाई का काम ख़राब है, बड़ई का ख़राब है, बूचड़ का ख़राब है, कारपेंटर ख़राब है, पेंटर ख़राब है या मिस्त्री ख़राब है। क्या जब ये मुस्लिम कारीगर नहीं थे तो क्या हमारे ये रोजमर्रा के काम नहीं होते थे? भाई जब दुकान में जूते बेचने में शर्म नहीं आती तो बनाने में कैसी शर्म। लेकिन अपनी झूटी नाक लम्बी जो रखनी है और बेरोजगारी का रोना भी रोना है।

कर्मशक्ति हीनता का एक और पहलु अपने वोट बैंक के लिए सरकारों द्वारा मुफ्त योजनाओं का दिया जाना।  जब किसी व्यक्ति को सारी चीजें मुफ्त मिलेंगी तो वह काम काहे को करेगा भाई। सरकारों को चाहिए कि मुफ्त देने से अच्छा हाथों में काम देना रोजगार देना जरुरी है तभी जाकर भारत की कर्मशक्ति बढ़ेगी और फिर हम विश्व गुरु की राह आगे बढ़ेंगे। जापान चींन इतने कम समय में कैसे इतने उपर पहुंचे, उन्होंने काम देकर अपने देश के लोगों की कर्मशाक्ति बढ़ाई। 

 सभी चीजें सरकार के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती, जीवन मेरा है तो सक्षम मुझे होना पड़ेगा।  स्किल डेप्लपमेंट के लिए सरकार मौका भी दे रही है पैंसा भी, पर करने वाला होना चाहिए। कर्मशक्ति को जागरूक करने की जरुरत है, तभी हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं। 

जिसके पास रोजगार नौकरी नहीं है अपने छोटे मोटे लघु उद्योग शुरू करो और खुद का रोजगार बनाओ, जैसे मुस्लिम समुदाय के लोग कर रहे हैं। कोई काम ख़राब नहीं होता, न छोटा बड़ा। छोटे लेवल की शुरुवात एक दिन बडी होती है। 

अगली बात हमारे देवभूमी उत्तराखंड की डोमोग्राफी तेजी से बदल रही है, शहर तो हाथ से जाते नजर आ रहे हैं लेकिन हमें  पहाड़ों को बचाना होगा, दो पैसों के लालच में बाहरी व्यक्ति को जमीन नहीं बेचनी है। और जब तक सरकार मजबूत भू कानून पारित नहीं करती संघर्ष जारी रखना है और विशेष मुस्लिम समाज को तो बिल्कुल भी जमीन नहीं बेचनी है भाईजान अभी एक और कल पूरा कुनवा बसा लेता है, ऐसा हम अपने कई पहाड़ी कस्बों में देख रहे हैं। अब उनको वहाँ से भगाना नामुमकिन है,

 देव भूमी को लव लेंड जेहाद से बचाना आज सबसे बड़ी चुनौती है, अगर ये समुदाय अपनी हरकतों से बाज नहीं आता तो पुरोला जैसा संघर्ष जारी रखना होगा । 

यह लघु उद्योग जेहाद तभी ख़त्म होगा, जब हम अपने काम खुद शुरू करेंगे, सुद्दी खीसा उंद हाथ डाळी नि होंद…।

अब आप बोलेगे अडिग जी आप संप्रदायिकता फैला रहे हो, भाई फैला नहीं रहा हूँ आगाह कर रहा हूँ। हम केवल कहने मात्र से संप्रदायिक और वो करें तो????? 

दिल्ली हल्द्वानी मात्रा ट्रेलर है, पूरी पिचर 90 के दशक कश्मीर जैसी ही होगी।

सत्य है कि :-

 सिद्दो लखडू अर सिद्दो मनखी सबसे पैली कटयोन्दू सीधी लकड़ी और सीधा आदमी पहले काटता है।

पड़यूँ लखडू अर पड़यूँ आदिम जल्दी सड़दो  पड़ी लकड़ी और पड़ा आदमी जल्दी सड़ता है। 

आधुनिक युग के सुरुवाती दौर से आज तक नजर डाली जाए तो हम हिन्दुओं का नरम रवैया ही हमारी कमजोरी रहा है। रजवाड़े अपनी ढपली अपने राग के लिए आपस में कटते रहे और दुश्मन कमजोरी का फायदा उठा अपना विस्तार करता रहा है सनातन को डूबाता रहा। देश आजादी के बाद, दोगुले, जय चंदों ने अपने बारे के गारे पीसने के चक्कर में झूटे सैक्यूलर का चौला पहनकर पूरी नईं पिढ़ीको कायर और नराधम बनाया, वो हैं भारत के यूथ ढपली बजाकर देश द्रोही नारे लगा रहे हैं यूनिवर्सिटीयों में। ये ढपली वाले क्या राष्ट्र रक्षा करेंगे जो भारत टुकड़े के नारे लगा रहे हैं। अंग्रेज बीज ऐसा ही बो कर गए कि उनके जाने के बाद उनके वर्णसंकर यहाँ लगातार सनातन पर कुठारघात करते रहते हैं। सनातन के असली विरोधी अन्य पंथ के नहीं बल्कि हमारे ये तथाकथिक उदारवादी सैक्यूलर रहे हैं।


दगड़्यो पृथवी पर मानव सभ्यता के आभिरभाव से युद्ध चलते आए हैं, पौराणिक काल से आज तक इतिहास भरा पड़ा है। मानव समाजों में अपने वर्चस्व हेतु लड़ाईयाँ होती आई हैं और आज भी अनवरत जारी है। देवयुग में पाप, अनाचार, व्यभिचार, अत्याचार और अकर्म अधर्म विनाश हेतु भगवानों ने तक हथियार उठाकर असुर अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की।  आज हर देश द्वारा आधुनिक तकनिकी के घातक हथियारों का विकास इसी वर्चस्व श्रेणी का एक हिस्सा है। इसी वर्चस्व हेतु जीव की एक प्रवृति अग्रेसिव होना लड़ना भी होती है। पारिस्थितिकी संतुलन कहो या पृथवी पर वर्चस्व लेकिन जानवरों में भी एक दुसरे को हानि पहुंचाने या ख़त्म करने की प्राकृतिक प्रवृति होती है। पादपों को शाकाहारी मारते हैं, शाकाहारी को मांसाहारी, और मनुष्य दोनों को।

कहने का तात्पर्य है कि अब जब ज्यों ज्यों सनातन को कमजोर करने वालों की सच्चाई सामने आ रही है हमें सचेत और जागरूक होना पड़ेगा कि आगे ऐसा ना हो जैसा पिछले शदियों और शदियों में हुआ। "मनसा वाचा कर्मणा" से अपने सनातन के लिए डटना होगा। भारत को फिर वही आर्योँ  वाला विश्व गुरु भारत बनाना है। मित्रो धरती पर वर्चस्व के लिए मुख्य दो रास्ते ही सामने होते हैं  या तो लड़कर जीतो या डरकर मरो।

अठाहरवीं शदी में गढ़वाल की गोरख्याणी को देखो जो लड़े वो या तो मरे या जम कर जिए,  लेकिन जो कायर जंगलों में भागे वहीँ भूखों मरे। 

मेरे उदाहरणो का मतलब बिना प्रयोजन लड़ना नहीं बल्कि अपने वर्चस्व एवं हकों के लिए आवाज़ उठाना, अपने धर्म संस्कृति के लिए अग्रेसिव होकर काम करना। अगर हम अपनी पीढ़ी को वेद पुराण गीता नहीं पढ़ाएंगे, अपनी सनातन मनीषा के लिए प्रेरित नहीं करेंगे तो कल कोई उन्हें बाईबल या कुरान पढ़ा देगा और ऐसा हो रहा है और हुआ है। भारत के तमाम आदिवासी ट्राईब लोग क्रीश्चयन बना दिए गए हैं, गरीब की बीबी सबकी भाभी होती है ध्यान रखना। जिनके बच्चों ने कान्वेंट में पढ़ा देखना वे कितने सनातनी हुए या अपनी धर्म संस्कृति के हुए।

मित्रो एक समृद्ध राष्ट्र हेतु शांति सबसे बड़ी उपलब्धी होती है। शांति राष्ट्र कामयाबी का पहला औजार होता है। लेकिन जब कभी परिस्थितियाँ आए तो झुकना नहीं रुकना नहीं। 

मित्रो इस बार हमें ध्यान देना होगा कि राष्ट्रवादी पार्टियों को ही चुनाव में समर्थ बनाना होगा। कुर्सी पर राष्ट्रवादी रहेंगे तो फैसला भी राष्ट्रवाद के हित के होंगे। हमें आगे कई और योगी मोदी तैयार करने हैं, ताकि सनातन बचा रहे हिन्दुत्व की उम्र और लम्बी हो। 

   ध्यान रहे वे भरे पड़े हैं उनका कॉन्सेप्ट क्लियर है जिस दिन सरकार गई वो अपने काम पर शुरू हो जाएंगे, इतिहास के पन्ने उनकी क्रूरता से भरे पड़े हैं।

ज्यादा दूर मत जाओ कुछ साल पहले UP में सपा की  सरकार के वक्त कैराना को ही देख लो आज भी वहाँ के हिन्दू अपनी बपौदी में नहीं बस पाए। यह विकास, रोजगार एक तरफ, पहले जीवन और आगामी पीढ़ी। 

बल 

बच्यूँ रैलो लाटो

खेंणी खालो माटो

यानी जीवन सुरक्षित रहेगा तो मेहनत करके खा लेंगे। 

दोस्तों अपनी बुद्धि, विवेक, चातुर्यपन, कर्म, और भुजाओं में दम रखो रोजगार पीछे आएगा, आज मुसलमान का लड़का क्यों नहीं रोता रोजगार के लिए, वो दमख़म के साथ सीख रहा है और ठोक बजा कर कमा रहा है। 

हमारा सु छिन बजार दुकान्यूँ मा  लन्यौर बणी घूमणा,  मोबाईल पर चिपके हैं, इन मोबाईल से नहीं होणी वाळी बाबू मावासी। कर्म करना पड़ेगा. हटगे घिसने पड़ेंगे। 

डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत याद रखो, जो ताकवर होगा वह इस धरती पर जियेगा, ताकत बुद्धिबल और भुजबल दोनो का होना जरुरी है। भगवान कृष्ण की गीता को जीवन में उतरना होगा, भगवान राम के आदर्शो व मर्यादाओं को चरिथार्त करना होगा। आचार्य चाणक्य की नीतियों पर चलना होगा।


जाय भारत, जय सियाराम

आपका

@ बलबीर राणा अडिग

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें