धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
लय भी है, प्रलय भी है
कला भी है, काल भी है
जटाधारी, बाघम्बरी
डमरू बाजगी, त्रिशूल धारी
नील वर्ण, नील कंठ
पवित्र गंगाजल के स्रोत
विष समन कर्ता
भक्त वत्सल
जो श्रेष्ठ श्रेयकर देवाधिदेव है
वह हमारा महादेव है।
@ बलबीर राणा अडिग
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