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सोमवार, 29 जुलाई 2024

कौन हैं सच्चे प्रेमी?

 


1.
उसने सवाल किया
कौन हैं सच्चे प्रेमी ?
तो! मैंने गिना दिए!
पति-पत्नी
माँ-बेटी
पिता-पुत्र इत्यादि इत्यादि।

साथ ही कुछ जिगरी मित्र बताये
गीत कविता शेरो शायरी वाले प्रेमी गिनाये
खून के आत्मजन सुझाये
वेलेंटाइन, लुका छुपी वाले हमसफ़र बिंगाए।

लेकिन!
वह असंतुष्ट दिखा
और तपाक से बोला!
अरे पगले ये प्रेमी नहीं
रिश्तेदार, नातेदार हैं
जो केवल आपस में निभाते हैं
रहते नहीं
प्रेमियों की तरह युगान्तर।

ये सब
परजीवी एक दूसरे पर आश्रित
इच्छाओं के इच्छाधारी
कामनाओं के कामदेव
रीति-रश्म नवाजी
सांसारिकता दुनियांदारी की विरादरियां हैं
नहीं तो देख......
वो शमशान घाट ?

2.
और सुन!
असली प्रेम तो
तेरे शरीर और आत्मा का भी नहीं है
आत्मा को जब निकलना होता
निकल जाता है किसी बहाने
छोड़ देता काया को
घृणित बना देता देह को क्षण में
और
यही सांसारिक रिश्ते
कुछ घंटों में काया का भी
अस्तित्व मिटा देते हैं
नहीं तो देख......
वो शमशान घाट ?

3.
*जिज्ञासू अडिग जी*
दिखता हूँ
असली प्रेमियों को।

वो देख सामने.....

*वेदों को*
जिसमें ऋषि और ऋचाएं सदैव के लिए अमर हैं।

वो देख
*गणित की पुष्तकें*
जिनमें वाणभट्ट और शून्य
पृथवी पर जीवन के अस्तित्व तक आलिंगनबद्ध हैं।

वो देख *रामचरित मानस*
जिसमें तुलसी और राम वर्षों से प्रेमालीन हैं।

वो देख *सूरनामा*
जहाँ सूरदास और कृष्ण युगान्तर से रासलीला में मग्न हैं।

सुन इस आवाज़ को
*मेरा डांडी कांठयूँ का मुलुक जैल्यू*
जिसमें नरेंद्र सिंह नेगी और पहाड़ का बसंत
युगों तक खिले रहेंगे।

और वो देख आलमारी में
हजारों लाखों कृतियाँ
जिनमें उनके सृजनकार और सृजनाऐं रहेंगी युगान्तर तक
हृदय और धड़कन की तरह।

4.

और दिखता हूँ!

देख सामने *बल्ब*
जिसमें थॉमस एड़ीशन और रोशनी
धरती के अस्तित्व तक साथ रहेंगे

देख आसमान में
राईट भ्राताओं और हवाई जहाज को
देख टेबल में
चार्लस वेवेज और कम्प्यूटर को।

और जो देख रहा ना तू
अपने आस-पास,
ना-ना प्रकार की चीज वस्तुओं को
*वो कार, टिवी, फ्रीज, मशीन*
*लत्ता-कपड़ा, भांडी-वर्तन*
इत्यादि इत्यादि इत्यादि
हमारे जीवन के अहम हिस्से
इनके साथ अमर हैं इनके रचनाकार
आविष्कारक जीवन के अस्तित्व तक।

5.
और देख
कुछ जुनूनी प्रेमियों को

वो देख *युद्ध स्मारक*
जिस पर अमर हैं
शहीद सैनिक और भारतवर्ष।

6.
यही हैं सच्चे प्रेमी
*कर्म और योगीजन*
कृतिकार और कृतियां
जो
शरीर व आत्मा के न रहने पर भी
अमर रहेंगे
धरती पर जीवन के साथ।

7.
और हाँ....
दिखाना भूल गया
ऊपर के सब प्रेमियों के
जनक जननियों को
जगत के अप्रीतम प्रेमियों को।

वो देख !
मिट्टी और अन्न की डालियाँ
समुद्र और बदलियाँ
पेड़ और आक्सीजन को,

इन्हीं के अनन्य प्रेमालाप से
धरा पर जीवन जन्मा है
ये ही हैं शाश्वत प्रेमी।

और इन शाश्वत प्रेमियों के
शाश्वत सृजनहार हैं
पारब्रह्म परमेश्वर
योगेश्वर, विश्वेश्वर।


@ बलबीर राणा अडिग
28 जून 2024
ट्रेक, दीपसांगला प्लेन SSN
17740'

गजल




कुछ गुंजाइस बची तो थी नहीं,

सलिए चुप रहा सफाई दी नहीं।


झूट के पुलिंदे नहीं पूरे खुम्ब खड़े थे वहाँ
उनके बीच सच्चाई टिकने की थी नहीं।

उन्नीस का बीस होता आया, मानता हूँ,
पर! दो का बीस होना देखने की थी नहीं।

बोल तो रहे थे सब अपने हिस्से का, लेकिन!
भीड़ में किसी की अपनी आवाज थी नहीं।

अपने बल्द की मार खाया हुआ जो था,
किसी और पर मड़ने पड़ने की थी नहीं।

जज्बात तो फायदे के लग रहे थे अडिग
पर जो बात थी वो कायदे की थी नहीं।

खुम्ब - पुलिंदों से बना बड़ा गठ्ठा/डम्प
बल्द - बैल

@ बलबीर राणा 'अडिग'

प्रीत के फेरे



हाय रे ये प्रीत के फेरे
मन अकुलाहट हिय को घेरे
विदा लेने को नहीं बन रहा
देख नीड़ में मासूम चेहरे

मलिन है प्रियसी मुख कांति
अंदर अनिश्चिन्तता अशांति
तिलक थाल पर कंपकंपी
वीरांगना को ये कैसी भ्रान्ति

किस भय के बादल घनेरे
हाय रे ये प्रीत के घेरे

बन्धन सब मुट्ठी में बांधे
असाध्य सभी डटके साधे
हट देख राह रोड़े भी हारे थे
आज डट हुए जा रहे आधे

क्यों हो रहा बस, बेबस मेरे
हाय रे ये प्रीत के फेरे

एक तरफ राष्ट्र फर्ज
दूजे तरफ गृहस्थ मर्ज
कंठ ना आए देश गान
बनने से न बन रही तर्ज

संशय क्यों हैं ये भतेरे
हाय रे ये प्रीत के फेरे

ओ मोहमाया महारथी
मत बना मुझे सारथी
निर्वाध जाने दे रण में
क्यों हरे जा रहा मती

मत डाल ये मोहनी डेरे
ओ ऐ! प्रीत-स्रीत के फेरे।

चल अडिग मोह छोड़
सारे माया बंधन तौड़
निकल राष्ट्र क्षितिज पर
अक्षि को संधान से जोड़।

इसी में भारत के दिन सुनहरे
मत जप प्रीत-स्रीत के फेरे।

रचनाकाल : जून 1999
विजयी ऑपरेशन (कारगिल युद्ध) गमन पर

@ बलबीर राणा 'अडिग'

----: गीत :----*


बदलने से बदल गया अपना गाँव भी,
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

पश्चिम से हवा चली थी
पूरब को खूब जमी थी
उड़ै सब अपने रस्ते
भूले सब नाते रिश्ते
जितने नंगे होते जाएंगे
उतने मॉर्डन माने जाएंगे

*फूहड़ता अपनाने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बौड़ा अब हुक्का नहीं भरता
काका मौ-मदद नहीं जाता
जेठानी को धै नहीं लगती
देवरानी अकेली पुंगड़ों जाती
जो उठने बैठने जायेगा
वो असभ्य कहा जायेगा

*चौपालें भूलने चला अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बेटी को खुद नहीं लगती
माँ को बडुळी नहीं बिथाती
शिक्षित ब्वारी नहीं शर्माती
सासू की हाँ हूँ नहीं भाती
शादी करेंगे निकल जाएंगे
माँ बाप अकेले छोड़े जाएंगे

*बृद्ध आश्रम बनने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

ढोल-दमौ पिछड़े हो गए हैं
बैंड डीजे अगड़े बना दिए हैं
झुमैलो के ताल बेताल हुए हैं
डिस्को खिस्को अपना लिए हैं
जो जितना अपसंस्कृति फैलाएगा
वो उतना बौद्धिक कहा जायेगा

*अपनी रीति छोड़ने लगा अपना गाँव भी*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी

सबके खाते खुले हैं
कुठार खाली पड़े हैं
अन्नधन योजना चली है
कुटली कांकर सूख रही है
जो घर जितना रीता होगा
वो घर उतना सजीला होगा

*थैली अर्थव्यवस्था वाला हुआ गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

सरकारी स्कूल खाली पड़े हैं
प्राईवेट बच्चों से भरे पड़े हैं
नैतिक शिक्षा का नाम नहीं है
बस प्रसंटेज की हौड़ लगी है
जो *मातृभाषा* बोलेगा
उसको उपहासित होना पड़ेगा

*हिंगलिश हाँकने लगा अपना गाँव भी*
देखो मॉर्डन हुआ है अपना गाँव भी।

*@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'*


*----: गीत :----*
बदलने से बदल गया अपना गाँव भी,
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

पश्चिम से हवा चली थी
पूरब को खूब जमी थी
उड़ै सब अपने रस्ते
भूले सब नाते रिश्ते
जितने नंगे होते जाएंगे
उतने मॉर्डन माने जाएंगे

*फूहड़ता अपनाने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बौड़ा अब हुक्का नहीं भरता
काका मौ-मदद नहीं जाता
जेठानी को धै नहीं लगती
देवरानी अकेली पुंगड़ों जाती
जो उठने बैठने जायेगा
वो असभ्य कहा जायेगा

*चौपालें भूलने चला अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

बेटी को खुद नहीं लगती
माँ को बडुळी नहीं बिथाती
शिक्षित ब्वारी नहीं शर्माती
सासू की हाँ हूँ नहीं भाती
शादी करेंगे निकल जाएंगे
माँ बाप अकेले छोड़े जाएंगे

*बृद्ध आश्रम बनने लगा अपना गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

ढोल-दमौ पिछड़े हो गए हैं
बैंड डीजे अगड़े बना दिए हैं
झुमैलो के ताल बेताल हुए हैं
डिस्को खिस्को अपना लिए हैं
जो जितना अपसंस्कृति फैलाएगा
वो उतना बौद्धिक कहा जायेगा

*अपनी रीति छोड़ने लगा अपना गाँव भी*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी

सबके खाते खुले हैं
कुठार खाली पड़े हैं
अन्नधन योजना चली है
कुटली कांकर सूख रही है
जो घर जितना रीता होगा
वो घर उतना सजीला होगा

*थैली अर्थव्यवस्था वाला हुआ गाँव भी,*
देखो आधुनिक हुआ है अपना गाँव भी।

सरकारी स्कूल खाली पड़े हैं
प्राईवेट बच्चों से भरे पड़े हैं
नैतिक शिक्षा का नाम नहीं है
बस प्रसंटेज की हौड़ लगी है
जो *मातृभाषा* बोलेगा
उसको उपहासित होना पड़ेगा

*हिंगलिश हाँकने लगा अपना गाँव भी*
देखो मॉर्डन हुआ है अपना गाँव भी।

*@ बलबीर सिंह राणा 'अडिग'*

रविवार, 28 जुलाई 2024

दीsनौठ



      बात पतै कि यु छयी कि मि बिगैर पता को छौ भटकणू तै भड़मणकार गर्मी मा। वा बि ज्यौठौ मैना अर दिल्ली गळियाँ। यौक चिठ्ठी हाथ धौरी भटकणू। उन त सैर अब मि उणि जादा नै नि छौ पर नै जाग त नै हूँद। फेर तौं सौरों पन्द्रा फिटै गळियाँ अर हजार लाखौं भिड़कतौळा बीच क्व ना भटकौ। दुसर मा तख अपच्छयाण अजाण मनखी तैं गौं का जन अपण्यास मिलणें आसा कन बेमानी छन। कति औणा कति जाणा, कै उणि कै सि क्वै मतलब नि। मतलब छन त अपणा बाटा अपणा काम सि। एक किरमुलैं जनि लुंग्याळ लगीं रैन्दी।

      गौं मा क्वी अपच्छयाण दिखै त कति लोग पूछी द्यना, भै आपै दौड़ ? कख बटे औण होयूँ होलू ? कै गौं जाण होलू आपन ? बाटू त नि भटक्याँ ? कै का यख जाण आपन ? उगैरा उगैरा। आवा चा पाणी पी ल्या, आवा छैल मु थौक बिसावा द्वी घड़ी आदि। यना आत्मीय अपण्यास मा भटक्यूँ मनखी बी अफूँ  सुबाटा चितान्दू।  अर तख क्वै मनू बि होलू ना, त भीड़ तै उणि नंगै कि चलि जाली पर उठाला नि। अर कखी कै मौल्ला गळियूँ मा अपच्छयाण अजाण मनखी भटकणु दिखै त डरौण्यां इंक्वारी अलग। हाँ जी कौन हो ? क्या तांक-झांक चल रही है लोगों के घरों में ? चल भाग, नही तो पुलिस के हवाला कर दूँगा।

      द रै, अब बोला ! इनू मैं दगड़ बि होणू छौ तै दिन। पर मिन सास नि तौड़ी अर भटकणू रयूँ। भैर बटी लोगूं घौरै घंटी बजान्दू, भितर बटे क्वै जनानी या मर्द चुळळ गेट खौली पूछदा, हाँ कौन ? किससे मिलना है ?

भैन्जी यहाँ कोई अबलू रौत बि रैता है।

अबलो ! क्या अबलो। ?

अज्जी गल्ती हो गई, अब्बल सिंग रावत है उनका नाम।

नहीं हम नहीं जानते किसी अब्बल या खराब को। अर ढक्क गेट बंद।

फेर हैका मोर पर, भैजी नमस्कार इधर कोई अब्बल सिंग रावत जी का घर बि है ?

नहीं ! मुझे पता नहीं आगे पूछौ।

ठेली वाळा मु। भैसाब आप इधर ही काम करते हो ?

तो क्या तुझे ये कनाट प्लेस दिख रहा है ? बोल क्या है ?

भै साब क्या है कि अब्बल सिंह रावत जी हैं ना चमोली गढ़वाळ बच्छैर गौं के, इसी मोनपुर में रैते हैं, उनका घर है बल यां। आप बि जानते हैं उने ?

भाईजान मोनपुर या मोहनपुर ?

जी भै साब मोहनपुर ।

वैसे ये मुहमम्दपुर है मोहनपुर नहीं। मोहनपुर पहले था अब नहीं।

पैले मतलब ?

मतलब कि अब नाम बदल गयो। पहाड़ी हो क्या ?

जी भै साब। आपका भला होगा माँ नंदा देणी होगी, अब्बल सिंह जी का घर बता देते तो। हमार गौं के हैं। अर क्या है ना, उनकी बैन रैती गौं में, बुढ्ढी हो गई, उसीने चिठ्ठी भैजी है, वयी देना था। ऐरां ! बिचारी का कोई सैं-गुसैं नयी है अब अब्बल सिंग के अलौ।

अरे भाईजान मेरा सर मत खयियो पाड़ी में। मुझे नहीं पता। वो गली नम्बर तीन में पता करो, वहाँ आपके एक पहाड़ी की चाय की दुकान है, वे बता देंगे। 

भैसाब बाटू। मतलब रास्ता बता देते तो ठीक रैता।

अरे भाई वो सामने टक्कर है ना, वहाँ से लेफ्ट ले लियौ, सौ दो सौ कदम पर एक और टक्कर मिलवेगा वहाँ से दाहिने हाथ को निकलियो, आगे फिर एक चौपुला आवेगा वहीं पर दाहिने को मिठाई की दुकान है मिश्रा वाली, वहाँ से बायें को सीधे आगे कदम-कदम बढ़ते रयौ फिर एक टक्कर, बायें को हो जयौ वही है गली नम्बर तीन।

      द रे किशनी, ठेली वळा का चौपुला टक्कर को चक्कर सूणी चक्कर औण लग्यूँ। सैरों मा क्वी सीद्दा मुख नि बतौन्दू अर कैन बतैयाली भी त यनु, वहाँ से निकल्यौ वहाँ से बडियौ।  पर चलो अबलू काकौ घौर त ढूंढणू छौ मिन, गमुली फूफु तैं बचन ज्व दियूँ छौ, कि फुफू येदां मि जरूर तेरी खबर सार पौंछै द्यूलु तेरा भुला मु। कति बार टरकली छौ मिन स्या दानी मनख्याण।

      त साब पूछी-पाछी पौंछयूं तै पाड़ी भै दुकान मा। साठी से अग्ने कु दानु मनखी, नमस्ते करि अर अब्बल काका का बारा मा पूछी। अरे भुला कख छिन तू अन्ध्यारा मा ख्वोजणु तै अब्बल तैं ? यख त जबार तलक सयी पता नि कैकू मिलण मुश्किल छन। मतबल मकान नम्बर, गली नम्बर, फ्लैट नम्बर सयी हूण चैंद। जन कि मेरु पता छन, गोबिन्द सिंह नेगी, पाड़ी चाय की दुकान, गली नम्बर तीन टक्कर के सामने। फेर अजक्याल त फून को जमानू छन, फून नम्बर नि तुमु मा ?

भैजी माँ दे होन्दी मौंस्याणी तैं किलै रून्दो, मतबल फून नम्बर नि छन जी।

त भौत मुश्किल छन रे भुला, यख त अमणी डवार वळौं तैं पता नि होन्दू कि समणी क्वौ परिवार रैन्दू, यू तेरु बछैर गौं नि।

भैजी कुछ त लाग बतावा मि ढूंढी ल्यौला।

      अरे भुला लाग क्या लगाण। आज सि बीस साल पैली यख भौत कमति मकान छया खेती-पाती होन्दी छै छक्की कि।  फेर बड़ा-बड़ा जमीना ठयकदारोन प्लौट काटी अर देखा-देखी सु मकानों जंगळ बणीगे। पैली यीं बस्ती कु नौ मोहनपुर छौ, औ सामणी मंदिर छन भगवान कृष्ण, मोहन मुरारी को। भगवान का नौ सि मोहनपुर। पर ! जन गुरौ कै दूळा मुंड कुच्यान्दो अर बाद मा सौजी-सौजी सर्रौ समै जान्द दूळा मा उनि (खुबसाट मा) यख बि सु जात। पैली द्वी चार छया अब सारौ मोनपुर मुहमम्दपुर बणेयाली तौन। वूं कु वोट बैंक बड़ीगे, पार्षद नेता वूं का बणियाँन त बस्ती नौं त बदलेणू ही छौ।

      अर सु छन हमारा हिन्दू बामण, जजमान, जाट, अगड़ा-पिछड़ा मा बंटयाँ। लड़ै-झगड़ा लूट-पाट आम बात छन यख। बेटी ब्वारियूँ रात-बिरात भैर-भितर औण मुस्किल होयूं। कै बग्वाळ फर पटाखा नि। कै होली मा रंग नि। पुलिस पौंछी जान्दी चम्म। अब सु छन दिन मा पाँच बार तै लौड स्पीकर मा अल्ला हो अकबर सुणणा। मजबूरी नौ मात्मागांधी होयूँ हमू तैं यख रौण। पैली भौत छया हमारा पाड़ी लोग यख पर अब सौजी-सौजी सब इना-उना बस्यान, सैद सु भै साब बि कखि हौर बस्यूँ होलू मिजाण।

भैजी तुम कन रौणा फेर यीं बस्ती मा ?

      भुला कख तक गलौंण यु बिदागत, भौत लम्बी छन। बल, भल खाणा वास्ता जोगी हुयूँ अर पैला बासा भुखौ रयूँ, वळी छुवीं छ हमारी। क्या बोन सर्री जिन्दगी यीं चा दुकानी मा काटी सैणी नोनू गात तौपणू रयूँ। आमदनी इतगा नि छन कि कै हैका जगा बसी जाउन। गौं छौड़ी भिज्यां साल ह्वैगी। तेरा सालौ  ऐग्यूं छौ यख। गौं मा तौं पुंगड़ौं औड़ू संतरा बि पता नि मिउणी। अब यनु नांगू कंगला-धंगला मुख कनै ल्हीजाण भै-भयात मा। मि जौं जख भाग ल्ही जौं तख। तरक्की कनू यीं सैर मा अयूँ पर यख पुटुग भरणा अलौ कुछ नि ह्वै साकू। नोना बि सु छिन तनि पुटुग गुजारौ कना। अब त मोरा चै बचा, सु चार कमरों एक फलैट छन मकाना नौ फर, तैमा यी छन द्वी ब्वारियाँ चार नाती नतैंणा अर हम द्वीयां लगै दस मनखियूँ कुटुमदरी को गुजर बसर होंणू। ल्या एक कुळा चा पी ल्या, यीं इलाका मा मेरी पाड़ी चा फैमस छन। बाकी अग्ने बदरी भगवानौं भरौसु। अर आप यख ? भै साबन सवाल करि।

भैजी मि बि यखी दरियागंज मा छन नौकरी कनू दसैक साल बटे।

औ भुला ठिक। नौकरी करा खूब पैंसा कमावा पर यख नि बसण रे ! आग लग्यां यूँ सैरों रंगा-चंगी मा। यख सि अपणू मुलुक खूब छन रौंत्याळौ। आपतौळी हवा पाणी। यु छिन फजल बटे राति ग्यारा बजी तक भिभड़ाटा बीच यीं दुकानी मा मुंड खाड़ डाळयूँ।

      चलो भैजिन बि अपणी हैसियत कु लगैन। किलैकि केवल पुटुग पालणा बजै सि तलौ मिंडखू बणि रावा त तेन भैर दुन्यां कख बटे द्यौखण। भैर रै किन इनि कै कुमच्याड़ा मा काटण कै काळा कनूड़ जंगळ सि कमति नि। अच्छा भैजी बोली मि निकळग्यूं तख बटे। पर ! अबलू काका को घौर नि मिल्यूं भौत फिरणा बाद बि।

      तै दुकानदार भैजी देखी याद आयी कि, बल ऐरां ! सर्री जिन्दगी दिल्ली रयूँ अर भाड़ ही झौकि। भैजी तैं क्या पता कि हमारा पाड़ी लोग तख राजधानी मा कखा-कख पौंछया। बड़-बड़ा उद्योगपती, नेता, अधीकारी, अपणी पाड़ी भाषा संस्कृति अर रिती-रिवाज का भंडारी पुजाळ संग्यौर। दिल्ली बटे यी हमारी भाषा साहित्यन सबसे बड़ू मुकाम हासिल करि। चै वेमा कन्हय्यालाल डंडरियाल, सुदामा पिरेमी, चन्द्रसिंग राही जी जना ऋषी लोग किलै नि छया जोन अपणी कंगली-धंगली मा बि सास नि तौड़ी अर गढ़वळी साहित्य अर संगीत तैं नै मुकाम नै पच्छयाण तक पौंछै इतियास रची।

      अब कमरा मा पौंछयूं त एक दां च्वैस ह्वै कि या ! तै गमुली फुफू क्या लिख्यूँ होलू चिठठी मा, सैद तै अब्बल काकौ पता को क्वी सुराग मिली जावो। जबकि चिठ्ठी पकड़ण बगत मिन गमुली फुफू तैं पूछीयाली छौ कि फुफू अब कख छन तु ये जामना मा चिठ्ठी भ्यौजणी।  सु छन लोग बिडीयो कौल कना, दिन रात चैट कना। त फुफुन बि सयी बोली छौ कि भतिजा मितैं क्या ? माळा गौरु धौळे-धौळ। मि अनपढ़न क्या जाणण तनमण्यां अजक्यालैं छुवीं। मिमा न फून ना तै अबलू फून नम्बर। सु पता बि बीस साल पैल्यै भेजीं चिठठी मा मिली मितैं, जबार तैन तख मकान बणायी छौ। तै सुजान सिगें नातिणिन बतैन तै पुराणी चिठठी पढ़ी कि बूढ़ी दिल्ली रौणी मोनपुर मा छन बल बूढ़ाजी गरौं मकान। तब मिन बोली बाबा ल्यौ कागज पिन्सन अर आज ल्येखी द्यै म्यार मनै छक्की कि। तै अपीड़ मनखी तैं।

मिन लिफाबो खोली अर चिठ्ठी बांचण लग्यूँ।

बल

      भुला तू अपणी कुटुम्बदरी नाती नतिणों दगड असल कुछल होलू तख। मि बि अब अपणा आखरी दिन गिणणी। चार बीसी अर चार ह्वैगी। आँखा नि दिख्यौंण्यां जमै ना। सरकारौ सु एक गैस दियूं पर सु बी बाळण नि औन्द मितैं अर स्या बृद्ध पिन्सनै बदै छक्की करि मेरी लदौड़ी चिरैंणी। फर निरभगी तू त कब्बी घौर बौड़ हून्द। कन कुन्नस ह्वै त्वैतैं। कन ढूंगौ लमडायी तिन घौरा नौ कु। अब त तू बि छाला फर पौंछण लेख ह्वेगी होलू मि जाण, मि से आठ साल त छवटू छै तू खड्यौण्याँ।

      अरे त्वै पता नि धरती पर औण सयी हम छवौरियाँ छया। तिन तीन साल मा यी बाबा टोकीयाळी छौ। अर तैका द्वी साल बाद ब्वै बी लमडी छै तै बौण पुन। तबार त्यौरा सालै उमर बटी मिन तु घुघती बोकी पाळी-पोसी, कै स्वारा भारौं तैं ऐ बोनू म्वका नि दिनी। अपणा हटगा तौड़ी जमीन जैजाद करी, गौड़ी भैंसियूँ घ्यू दूध बैची त्वै गौपेसुर डिग्री तक पढ़ाई लिखाई। अर जनै तू भली नौकरी लग्यूं तिन टप्प मुख लुकायी अपणी यी बैंणी तर्फां बटे। अरे त्यार बाना मिन ब्यौ बि नि करी अर सरी जिन्दगी त्यार बदलौ यीं पितर कूड़ी तैं जम्पणू रयीं।  अरे निरासिला त्वैन कब्बी नि स्वोचि कि मेरी दीदी का क्या हाल होला। लोकूं मा कति रैबार दिनी पर क्या मजाल कि तिन कब्बि एक चिठ्ठी कतरौ तक भेजी होलू। मिन त लोगूं मा यी सूणी कि त्वैल तखी कै देस्वाळ सरदारै नोनी दगड़ ब्यौ करी अर अब त नाती नतैण भवनचारी हुयीं, भुला अपणा होणा-खाणा कैतें पिड़ान्दा।    

      अबलू तबार कति साल बाद तिन एक चिठठी भेजी छौ कि दीदी मिन यखी मकान बणैयाली अर कब्बी त्वै बैद्यूला घुमौंणा वास्ता। आज बीस साल ह्वैगी तै चिठ्ठी उणि। मेरी आँखी लगी रैंद तबार बटै तै स्यातौळी सारी डीप मा कि मेरु भुल्ला ओणू होलू। अब त जग्वाळ करि मेरी आँख्यूँ जोत बि खतम ह्वैगी। तबारी तै चिठ्ठी फर लिख्याँ पता पर आज हपार पल्ला ख्वाळा रामसिंगा कणसा नोना किशनी हाथ छौ ये चिठठी भ्यौजणी।  अब त तू नौकरी बटे रिटैर बी ह्वैगे होलू। अब त्वै मा बगत ही बगत होलू, अब त औ रे कब्बी यीं टुटदा तिबारियूँ छूटदा मोरियूँ दर्शन कनू। अब मेरा दिन कमती छन। समाळ अपणी यीं पितर कूड़ी तैं ज्वा मेरी जिंदगी भरै समाळी छिन। मेरी जग्वाळ करिं कि जब तू ऐलो तब्बी मिन पराण छौड़ण। मि उणी बिस्वास छन एक ना एक दिन मेरु भुला बौडी औलू मिमा।

तेरी दीदी

गमुली (गायित्री)

      मेरा आँखा बटे तर्रर धार बोगिन कि रे किशन यनमण्यां बि मनखी रंदन लोग। चलो अग्नै बात अयीं-जयीं ह्वैगी। मि अपणी नौकरी मा मैस्यों। फर मुल्की भै बन्दों मा तै अबलू काका की पूछण नि भूल्यूं कि मिन बि द्यौखण सु ढुंगा सरैलौ मनखी। मिन परण करि कि जबार सु बुढ़या मि उणी मिल्लो मिन सु बच्छयौर गौं पौंछौंण तक नि छौड़ण।

      यनी एक दां पंचकुयां रोड गढ़वाळ भवन मा एक कारिज छौ परबासी भै बंदों उरयूं। त दगड़यूँ का न्यूता फर चलग्यूँ। तख अपणा मुल्की भै-बन्दों दगड़ मुखाभेंट ह्वै जान्दीं। तै दिन तखी छुवीं बत मा अब्बल सिंग काका की पूछण पर हमारा इना सैकोट गौं का एक बुजुर्ग बौढ़ान बोली कि बेटा कै अब्बल सिंगै बात कनू तू बच्छयौर गौं वळा की।

मिन हौं बोली।

अरे बेटा सोब अपणा करम को फल छिन। अपणू बूती काटन्दा जु काटन्द। गौं सि भैर हम नौकरी बाना बि आन्दा अर छंद औण पर बसी बि जान्दा। पलायन जुगों बटी सतत परकिरया छन। पलैन नि होन्दू त मनखी सरा दुन्यां मा कनै बसदो। पर जख बि जावा, जख बि रावा पर अपणी जड़ जमाळ नि छौड़ी चैंद।

      अब देखा यख हम जथ्या लोग अयाँ सब क्वी छव्टी, क्वी बड़ी पोस्ट पर छन। सोब अपणू गुजर-बसर कना, पर दगड़ मा अपणी भाषा संस्कृति की समाळ बि कना। देखा सु अग्नै मंच फर सब्बी कवि लिख्वार छन ज्वा अपणी भाषा मा पोथियां ल्यौखणा। क्वै गीत रचणा, क्वी गाणा छिन। अपणी पाड़ी संस्कृति ज्यून्दी धरीं हमारी यख। अपणा बार-त्यौवार सब्बी कुछ मनोन्दा हम। बार-त्यौवार सुख- दु:ख पर गौं मा जाणा रन्दन। गौं कि कूड़ी बाड़ी खैनी करिं च। भलै लोगूं मा इजार-बिजार छन पर बांजी नि छ। साल मा एक द्वी वार अपणा द्यौथानों मा पूजा मंडाण लगाण नि भूलदा।

      बेटा जब मनखी कै हैका जगा जान्द त वेतैं अपणी परम्परा भाषा संस्कृति तैं दगड़ी ल्हीजाण चैंद ना कि अपणी बिसरी हैके ब्वे तैं ब्वे बोलण चैंद। पर बेटा कुछैक लोग छन जौं कि आँखी सैरों यीं चक्काचौंध मा चौंध्यै जान्द अर वूं तैं अपणी जड़ नि दिख्यैन्दी।  तौंमा सु अब्बल सिंग बि छयौ। तैकी खूब धैन-चैन छै ज्वानी मा। औन्दू छौ सु कब्बी कबार भूल्यूँ-भटक्यूँ हम पाड़ियूँ ब्यौ बरियतियूँ मा। तै मोहनपुर मा छौ तैको मकान। कुछैक साल बाद तख दंगा होण सि सु गाजियाबाद चलिग्यूं। तुमुतैं पता होलू कि ब्यौ बि तेन यखी सरदारिण दगड़ करि। नौना बाळा खूब हुस्यार हुयां तैका पढ़ण मा। अब विदेस भाज्याँ बल।

      रिटेर होणा कुछैक साल बाद तैकि अर तैकि बुडळी क्या नि पटी स्या तैतें छौड़ी अपणा नोनू दगड़ चलिन बिदेस अर सु छूटी गयूं यकुलौ तै फ्लैट पर। द्वीयैक साल पैली मिन बि अखबार मा पढ़ी कि गाजियाबाद हिल इनक्लेव एक फ्लैट मा एक बुजुर्ग मरयूं मिली बल। जब अगल-बगल वळौं तैं बास आई तब पता चली। अखबार मा तैको  पता दियूं छौ कि उत्तराखण्ड मूल को छन अर तैका नोना बाळा कनाडा मा रन्दन। द रे बेटा यु छन कै राजन-बाजन मनखी को दीनौठ हौणा हाल, क्या बोन तब।

      तति सूणी मेरी बाज गौळै मा अटगी कि अटगी रैगी, कि अगला मैना जब मि घौर जौला त स्या गमुली फुफू सणी क्या जबाब द्यूला कि तेरौ भुला सरैल से भी अर जड से भी दीनौठ ह्वै गयूं, जैकि जग्वाळ मा तिन अज्यूँ तलक अपणू पराण थामियूँ।

 

दीनौठ - हर्चण/गुम ह्वै जाण। जै कु कुछ अता-पता नि मिलदो। 

कानी : बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’

ग्वाड़, मटई वैरासकुण्ड चमोली

भ्यास : एक पिरेम कानी

 


1.

      ब्याखुनी गौधुली बेला, सौणौं मैंना, सर्री धर्ती-पिर्थी हरीं-भंरी, भैर-भितर जप्पा-तप्पी, बाटा-घाटा झांड़-झंकार, डानी-कान्यूँ छीड़ा-छंछरौ सुंस्याट, मुड़ी गाड़-गदनों घुंघ्याट। वली सारी सटयाड़ी जख साटी झंगौरु चौपत्या अर पल्ली सार कुद्याड़ी द्वीपत्या, कुछैक दिन पैली यी क्वौदै ग्वड़ै सौकि बेटी ब्वारियूँन कमर सिद्दी करि छौ। अजक्याल गौं ख्वाळौं मा मनखी कमति दिखणा छया, किलैकि गरमी छुट्टी काटी नौकरी वळा नौकरी फर, स्कूल्या इस्कोल, अर बाकी घर्रा छानी मरुड़ा लग्याँ छा गाजी-बखरौं ल्यैकि। अब सटैड़ियूँ मा द्वीग्वौड़ लगौंण बैठियां छा लोगबाग। ब्याखुन्दा बगत कुयैड़ी गौं-गुठ्यार अर सारियूँ मा छौ कब्बी लूकणी, कब्बी लौंकणीं। अर तनि शीलू घाम छौ लुक्का-छुप्पी कनू।

      ब्वे जंगळा मा छै सुप्पा मा कुछ नाज फैटणी अर स्या खौळा डीप पर छै बैठीं सुद्दी दाथुली टुकू बदी ढुंगौं कटकै टेमपास कनि।  ऐ गौ, तू क्या छन आज बल्द बैच्यां जन निचन्त बैठीं ? पुंगड़ा बि नि गै तू। वींन क्वै जबाब नि दिनी ब्वे तैं।

      तबारि गौं मुड़ी सड़की बैंड फर प्वाँऽऽ प्वाँऽऽ.....। गाड़ी हौरन सूंणी वींन सट्ट जंगळा तौळ बटे कुटळी हाथ ल्यैनी अर दथुली कर्छुळी कुचाड़ी अर धनतुरन भाजिन तै धाराऽ पुंगड़ा तर्फां।

ऐ ले! ऐ गौ ! ऐ खड्यौण्यां, ऐ धन्ना कख छै तू यीं कुबगत पुंगड़ा भाजणी ? ब्वे धै लगाणी रैयी मथि बटे अर स्या मुड़ी बटे पुंगड़ा तरफां दनकौंणी रै।

      तै दिन वींका कंदूड़न दूर बटी सूणी छौ कि सु आज घौर औणू। अर आज दिन बटी अबार तक क्वी गाड़ी गौं मा नि ऐ छौ। अर सु औन्दू बि यीं बगत छौ सदानी। त वीन पक्कू मन बणैंयाली छौ कि आज या त वार या त पार। अगर वेन बौक मारी त मिन तखी धारा पुंगड़ा सामणी भ्यौळ पाखा फाळ मारी द्यौण।

      स्या दनका-दनकी बीसैक मिलट मा धारा पुंगड़ा पौंछिन अर जिबलाणा बीच, बाटा एक कुमच्याड़ा मा बैठी तैकि जग्वाळ कन लगी। सु सड़की बैंडौ बाटू तयी पुंगड़ा ह्वै गौं मा औन्दू छौ।

      कुछैक देर बाद सु पीठी फर एक बैग अर हथ मा छतरी ल्यै मुंड कैदो करि छौ उकाळ लग्यूँ। तबार तै कुमच्याड़ा मा स्या झप्प तैका समणी परगट ह्वैगी। अर वींन द्वी हाथ फैले तैका बाटा मा बाड़ करि रस्ता रोकी। तैन मुंड खड़ू करि देखी त हक्क बक्क। अरे ! यनु कनै ? जैकि जुबान इतिगा साल बटे बंद छै सु कने परगट ह्वै आज, यीं तैं मेरु औण केन बतायी ? जिट घड़ी सोचणा बाद तैन बुलाणौं सौंस करि।

ऐे भ्यास।

वींन बि तप्प जबाब मा - ऐ भ्यास।

सु - क्व च भ्यास ?

स्या बी - क्व च भ्यास।

सु-तू छिन।

स्या - तू छिन।

सु गिच्चा फर अंगुळी लगै - चुप्प ?

स्या बि उनि - तू चुप्प ?

खित्त-खित्त, खित्तऽऽ.......। द्वीयाँ दगड हैंस्यां। वेंन फट्ट पीठी बैग भुयाँ उतारि अर वीं का सामणी कमर पे हाथ धरी तड़तड़ू खड़ू ह्वैगी। अब द्वियाँ खड़ा-खड़ी आँखा कताड़ी एक हैका आँख्यिूँ मा उतन लग्याँ। एकदम स्याऽन-चुप्प मौन। जनु इतिगा साल बटे चलणू छौ। कुछैक मिलट बाद द्वियूँ आँखी टबलाण लगीं। पर फैसल नि ह्वैन कि क्व छन भ्यास, यु सवाल द्वीयूँ जिंदगी मा अज्यूँ तलक बेउत्तर छौ।

      जब द्वियाँ मौन से टस्स-मस नि ह्वैन त वींन झप्प-झप्पाक मारि वैका सांखा फर, अर वैका कांधिम अपणु सरेल छौड़ी हिंकरा-फिंकर रुण लगी। तैन बि चप्पऽ अंगवाळ बौटि अर स्या अपणा छत्ती फर चिपकाई। अब द्वी तर्फां बटि मायै रुद्री रबै होण लगी। यथ्या साल बटे ज्वा उमाळ समाळयूँ छौ द्वियूँ कु वा भभ्कै कि खत्यौण लगि। खूब देर तक द्वियां एक हैके साँखी टंग्याँ अतिरेक पिरेमा उदगार मा डुब्याँ रयाँ।

      तबार तक घाम धार पोर चलिग्यै छौ अर कुयेड़िन संगता अपणू जाळ फैल्याली छौं। हफार बंज्याणां तरफां निन्यारौन सांध्य भजन सुरु करियाली छौ। अर तै पुंगड़ा कुमच्याड़ा मा द्वी मायादार एक हैके साँखी टंग्याँ एक हैके मायै ठौ ल्यौंणा छया। सुकर छौ कि तबार तै बाटा क्वी नि गुजरी निथर फेर जातर-पातर वळी बातन सर्रो गौं उच्याणू छौ।

      लगभग अद्दा घंटा तक सु उमाळ पूरौ खत्यौणा बाद जब द्वियाँ हळका ह्वैन त धन्नी (धन सिंगल) बोली, लाटी हम द्वियां ही भ्यास छन, ज्व बारा साल लगि हमुतैं ढै आखर बोन मा। सु गिरीश सुन्द्रीयाल जी गीत गुणगुणाण लग्यूँ।

दूर उड़ी जौला चल, हे मेरी चकौरा

चल तौं डांडयूँ पोर सच्ची, हम घौल बणौंला 

चल मेरी धनुली अब अब्यौर ना कौर, छांट चल यख बटे। चल चलि जौला वीं माया कनूड़, जख हम द्वीयाँ होला अर होला यीं परकति का सब्बी मायादार। जख रंदिन बांज-बुरांसै माया, बुरांस-अंयारै माया, अंयार-उदीसै माया, तैलिंग-खौरु, राग-थुनैरै माया अर यूं सब्यूं तौंळ उन्यांण, ल्यंकुड़ा अर कति परकार का वनस्पतियूँ पिरेम संगसार बसदू। मनख्यूँ कुलैं तौळ हमरी माया उर्जित हो आसा नि छन। चलि जौला वख, जख बिगैर रंज-राड़, कज्यै-झगड़ा, खिर्स-खिर्त का हैंसी खैली परकति का पिरेम अपणी जिंदगी ज्यूणान जुग बटे। अर यूँका दगड़ पिरेमा गीत गांदा घुघता-घुघती, कफू-हिलांस अर तमाम चखुला-चखुल्याँ, घ्वैड़-काखड़ जीबन नमाण। सु अपणू गीत गुणगुणाण लग्यूं।

चखुलौं जन आगास मा उड़ौला,
कफु हिलांस बणि खुद मिटौला,
निरपँखी माया मा पँख लगै जा,
द्वियूँ की प्रीत तैं, उड़ान द्ये जा,
मायादार झुकुड़ी मा उदंकार रैलो
कांठियूँ को हियूँ यनु गळणू रैलो,

पाणी बणि गदन्यूँ मा बगणू रैलो।

      धनुली ध्यान तैकि छुवीयूँ अर गीत पर ना बल्कि एकटक तैकी मुखड़ी पर छौ, कि घूळणैं चीज होन्दी त घळऽऽ घूळी ल्यौंदी अर सदानी वास्ता अपणा ज्यू मा पांजी देन्दी। अर सु धनसिंग मायौ वेदांग खोली बैठग्यूँ छौ बाट-बाटी।

      धनसिंगल वींकु हथ खैंची अर बाटा से अबाटा ल्हीग्यौं ओ पुंगडां मथि एक हैकी धार मा, जखमु पुंगडौ आखिर किनारौ छौ अर तख बटे बौं तर्फां चुरांत पाखु मुड़ी गाड़ तक। मुड़ी बसग्याळी गाड़ै सुंस्याट अब हौर तेज ह्वैगी छौ किलैकि अब सर्री पृथिन अंध्यारौ ढक्याण औड़याली छौ। बादळ ओऽ मथी द्यौगणी डाने तरफां कठ्ठा ह्वैगे छौ। द्वियाँ गाड़ै तरफां मुख करि बैठयां। धनसिंगल अपणी बात अग्नै बढ़ै।  

      अब तू यी बतौ पगली हम मनख्यूँ संगसार मा क्व छिन असली मायादार ? अरे यीं मृत्युलौक मा  मायादार नि रिस्तादार छन सब, अर रिश्तादारी जीयी नि जान्दी बल्कि निभै जान्दी। रिस्तादार औन्दा जान्दा रौंदा, पिरेमियूँ जना जुग-जुग तलक दगड़ नि रौंदा। जन सु द्यौगणी डानो अर जंगळ, सु गाड़ अर पाणी, सुर्ज अर दिन, बादळ अर बर्खा, जून अर रात, तेन अगासै तरफा सान करि। किलैकि अब अगास मा कुछैक जगा बादळ छंटी सौणैं काळी राति कु मिथ्या तौड़ी पूरणमासी जून दप्प दमकौण लगीं छै। अर वीं जूनी उज्याळा मा धनुली मुखड़ी हौर दमकौणी छै।

धनसिंगल सवाल करि । बोल अग्नै क्या इरादू छिन ले सतमंगळया ?

इरादा यन छ रे औंस्या कि। धनुली मुळळ हैंसी अर फेर झप्प तैका सांखी, जन तिसाळी गाजी पाणी तलौ फर चिपकेन्दी।

      द चुप रौ, ना लगौ अपणी तै कवि वळी भाषा। मिउणी पता नि तति मायै गणित, पिरेमों विज्ञान। बस मि त इतिगा जणदी कि तू मेरु छन। अर तेरी मि छौं कि ना, तू जाण। निथर त्यारा सामणी मिन सु सामणी पाखा उन्द फाळ मारी द्यौण। पैली ये जलम नि त वे जलम मा सयी।

       धनसिंगल चप्प हाथ वींका गिच्चा फर धरी अर साँखी बटे स्या अलग कैर वीं कि मुखड़ी द्वी हाथ्यूँ बदै थामी, ऐ भ्यास अग्नै ना बोल्याँ। भ्यौळ फाळ हमारु दुश्मन बि ना मारियां। अरे अब जग्वाळ खतम, मौन मायै जातरा खतम। अर राधा कृष्णें पिरेम जातरा सुरु। 

धनुलिन अग्नै छुवीं बड़ै, अच्छा ज्व बात तु बिंगाणू छौ सच्चा मायदारों अर पिरेमियूँ की त क्या तू तनु मालिक होलू या पल्ला ख्वळा सगरामी बौ अर मंसाराम भैजी जन, कि एक हैका तैं बिरै च्वळथ्या-म्वळथ्या अर बाकी टेम लठ्ठम लात।

      औ! मेरा मौने ल्यौणि कि सच्ची ? त्वै क्या लगणू। अरे भ्यासौ स्वौच अगर मि दुनियाँ का जन वासना कु पुजारी रैंदो त यथ्या साल जग्वाळ नि करदू। अडिग जी कु बोन छौ कि - पिरेम मनाणू जर्रा सि /श्रद्धाऽक फूलों जर्वत होन्द/ बाकी/ वासना पुळयाणू मनखी/ इच्छाऽक हजार टूंणा कना रैन्द। अर दुन्यां चारै यति साल मा मि क्या-क्या नि कैर सकदू छौ। पर मिन सच्चा पिरेमें परिभाषा तैं खंडित नि हौण दिनी। जीतू अर भरणा का जन हमारी पिरेम कथा अधुरी नि रैली, त्वै उणि मि गजू कि मलारी हौंण वळी नौबत नि औण द्यौला। कुछ बि हो अब अग्नै तेरा अर मेरी माया बीच क्वी अड़चन आली त मि मालूशाही बणि त्वै राजुला जनु जीती ल्यौला। तेरी सतमंगल्यै दसा मि औंस्या उणि यी सुफल होणू हौलू मि जाण, निथर आज तक तिन कै हैके ह्वै जाण छौ।

अगर ह्वै जान्दी त तू क्या करदू ?

करदू तेरो कपाळ ! क्या करदू, जन तुलसीदासन करि।

ओ ! मि गलती कनि म्येल्यौ। भारता वास्ता एक हौर तुलसीदास मिलण से त नि रोकणी ? खित्त-खित्तऽऽ। मतलब भ्वोळ मितैं बिगैर मातृत्व कु मीरा जनि रिती ज्वग्याण रौण पड़लू म्यैल्यौ। 

      ना रे पगली ना, यन बतौ मीरा टेम पर कृष्ण छौ? ना नौ। मीराऽन शाररिक भौग से परे कृष्ण दगड़ पिरेम करि, मतबल मनसा वाचा अर कर्मणा सि समर्पित पति भक्ति कु अनन्य पिरेम। जख तन-मन सब समर्पित ह्वै जान्द त वीमा शाररिक भौगे गुंजैस नि रैन्दी, किलैकि यामा सदानी मानसिक धीत तृप्ति रैंदी अर जख मानसिक धीत रैंदी त तख ना शारीलै भूख जगदी ना मन तैं भौगे इच्छा हौंदी। पिरेम मा तृप्ति ना हो त सच्चू पिरेम नि ह्वै सकद।

      दामपत्य मा ज्वा असली पिरेम हौण चैंद सु पिरेम रौलू हमारौ। नंगा-नरवाण खाली संबन्धौं वास्ता नि बल्कि मन करम वचन से भी खुला नंगा क्वै सक-सुब ना, एक हैका तैं ताळु-कूंजी ना, तन-मन अर ज्यू का डवार सदानी उगाड़या रैला एक हैका तैं। अडिग जी कु बोन छौ कि- सच्चू पिरेम/एक फूकऽन बजद/जौंळा मुरुली सुर छन/ यू ही अनन्त नाद/ अनहद मा/ पौंछणों बाटू छ

ऐ वेदांतचारी ! मि नि समझदी तेरी स्या दार्शनिक छुवीं। तू यनु बतौ यीं छत्ती मा ममतौ दूध कबैर तलक पौजलु।

धनसिंग फैर सुरु ह्वैग्यूं -

फजल को घाम रूमुक होण तक,

बौंणचर गाजी किलौठा बंधण तक,

पंछियूँ का घौल, बासा औंण तक,

निन्यारियूँ कु भजन, भजण तलक,

मैं तेरी जग्वाळ मा बैठीयूँ रौलू

कांठियूँ को हियूँ यनु गळणू रैलो,

पाणी बणि गदन्यूँ मा बगणू रैलो।

      अज्जी कवि माराज जी ! चुप रावा ! तेरी बातौ मतलब बींगणी छन, कि तू मितैं गिरस्थ्याण ना जोग्यांण बणाण चान्दू। भक्ति करा मनैं धीत राखा अर शरेल सुखावा। विरह आग भी पढ़ी छौ मिन कखि, अपणू दृष्टांत बतालू ये फर कुछ।

धन सिंगल झट्ट द्वी हाथन मुख बूजी, अच्छा त यु बात छन। अरे भ्यासौ ! तू क्या चिताणी मि खाली कितब्यूँ मा डुब्यूँ रयूँ। अर वैल चप्प वींका हौंठड़यूं पर अपणा हौंठ धरी। तेरी आग छै रोकीं त मेरी बंणाग। सुद्दी नि सैयी मिन सु मौन मूक वेदना यति साल। 

      ओ ! त मैं यी भ्यास छौ म्येल्यौ। मिन नि जाणी जै तैं मि अजाण निर्जण्ड खस्या छौ समझणी सु यति बड़ौ पिरेमों ज्ञानी-ध्यानी पुज्यारी होलू। खित्त, खित्त, खित्तऽऽ। अब ज्ञान यी सुणोंलू कि अग्ने बाटू बि हिटालू ?

सु मुल्ल हैंसी। अरे मास्टर छौं ज्ञान बि द्योलू बिज्ञान बि बतौलू अर पिरेमा बाटा ही ना टुकू बि पौंछालू। चल, तैन घनुली हाथ पकडी अर हिटणू खौंचि। सु बैठीं रयी।

      वातावरण मा बदळद्यौ साफ उज्याळु छौ होयूँ। धनुलिन बोली, ऐ ज्ञानी क्या जोग्यूँ जन मांगी खवोण ठौरी तेरु ? गिरस्थी नि जम्पण ? अकल से काम ल्यौ। घौर बटे कुछ सामळ-तामळ रखण पड़लौ, कुछ पैंसा-पाई, चोरी सई पर यति त हमारु हक छैं छिन तै कूड़ी पर कि अपणू हिस्सा निकाळी सकदा।

      अरे यार तै बातै चिन्ता न कौर मेरु सब बंदोबस्त करियूँ, सरकार साठ हजार तनखा द्यौणी त्यारा धनसिंग उणि। तिन क्या सोचि मि तबार बटे सुद्दी छौ लाटो जनु मौन रयूँ। यीं छुट्टी यांका बाना छौ अयूँ, पर आज त्वै भ्यासल पैली अगल्यार चूंडीयाळी, निथर दिसाण बटे उच्याणू पलान छौ मेरु। अच्छा यनु बतौं कि त्वै उणि कैल बताई कि मि आज औंणू ?

पौथुल्यौन, तौं बादळौन। जबार बटे तू पौड़ी पोस्टिंग गयूँ तबार बटे मेरु धकध्याट हौर बढ़न लग्यूँ, अर भितरै-भितर लोग छुवीं बि लगाणा छया कि सु तखि कै अपणा मास्टरणी सौंजड़या दगड़ कनू बल ब्यौ। सौत्या ढा बदिन म्यार धीरजल जबाब दिनी कि अब नि सयैन्दू, सब्बी बंधने बर्त तौड़ी आज त्वै दगड़ आर पारै लड़ै लड़णा मनसा सि तैयार ह्वौई।

अच्छा ! कौन सि त्वै दगड़ मेरी करार छै करिं।

ऐ भ्यास मास्टर ! मितैं साईक्लौजी इस्पेलिंग पता नि कि तैमा पैलु लेटर ‘पी’ छन या ‘एस’। पर तै चौदा सालै उमर बटे तेरी आख्यूँ रैबार बी जणदी अर करार बि। सच्ची बतौ अब क्या बिचार छ ? आज रात कख जाण?

अरे ठौ खौ दों जरा, बारा सालै विरह मायै थौक बिसाण दे, बाकी ह्वै जालू जन बि होलू थै ल्यौला। अब तेरु हाथ मेरा हाथों सि छूटी नि सकदू इतिगा गारंटी मेरी चा। अर तैन चट्ट एक भुक्की लीनी वीं कि गुंदख्यळी हाथ्यूँ कु।

धनुलिन सरमांदी बोली मेरी जग्वाळ भगवानल सैम करियाली, हे बैरासकुण्ड मादेव हमारु घौर बसण सयी तेरा मंदिर मा पाच सेरौ रौंट काटुला अर एक कूलौ प्रसाद चढ़ौला। अर सु फेर पळकौंदी तैका सांखी लगिन। जनानी पिरेम मा चट्ट भीजण अर गळण वळी जु होन्दी। स्या ज्यू लगण फर पिरेमें अति तक पौंछी जान्दी वा इलै कि भगवानै रचना मा नारी रूप पिरेम तैं अंत्यौदय तक पौंछांण वळी जु हौन्दी। पिरेमें साक्षात मूर्ती छन क्वी त स्या मातृशक्ति छन। चै मर्द जात अपणी वासना वास्ता पिरेमों ढोंग किलै ना करौ पर स्या बात अर विस्वास पर अपणू सर्वस्व अर्पण कैरी देन्दी।     

आज द्वियाँ सालों का विरह वियोगा विलाप सि मिलन संजोगा ऐसास मा छा ख्वयां।  धनुली कु धनसिंगा नौर मा मुंड छौ धरयूं अर धनसिंगौ वीं कु हाथ अपणा हथगुळयूं मा थामी छौ। अर धनुली तैं पिरेमसागर सुणैं सुखसागर छौ देणू।

      हौर-पौर घासा जिबलाण मा मिंढखौं छौ एक टटराट मचायूँ अर झळकीड़ा छां आखिर द्वी सौ गजै लड़ै लड़णा जबर कोसिस करि कि, सौंणें काळी रातौ अंध्यारु हमुल जीतणैं छ। तौं पिरेमियूँ मिलन देखी मथि अगास मा बादळ बि खुसी बदिन धींगा-मस्ती छौ कना, अर जून लुका-लुकी तौंका प्रेमालाप देखी छै सरमाणी-

कि तबारी गौं तरफां बटे हल्ला रौळी सुण्यौंण बैठयूं, सु हल्ला रौळी कुछ-कुछ बिंगौण मा औण लगी छौ, अरे अब्बी त स्या अपणा खौळे दानेण मा छै बैंठी। ऐ चला रै चला सु धन्ना गुम छौ बल। गौ तरफां नजर मारि त भिज्यां टौर्चों उज्याळु तौंका तरफां छौ औणा।

 

2.

      धनुली अर धनसिंग द्वियां एक विरादरी का याने जजमान। जात अलैद छै, धनुली फर्स्वाणें बेटी अर धनसिंग पंवार खानदानों। धनसिंगौ बुढया दादा यूँ फर्स्वाणां भ्यड़ा मा छौ घरजवैं अयूं कै जमाना मा। अब चौथी पीड़ी छै चलणी। धनुली अर धनसिंगौं दुध त एकी छौ पर बंस अलैद, बंस अलैद हौंण सि मुंडैत नि छौ।

      द्वियाँ बळापना सौंजड़या, घौर, बण, इस्कोल सब्बी जगा दगड़ हिटण, दगड उठण-बैठण अर ख्यौलण। अर एक बात हौर छै यूँ द्वीयूँ मा कि सौंजड़या त गौं का हौर नानतिन बि छया पर यूँ द्वी हौरों से अंगळता ? अंगळता इलै कि द्वी एक नासी सिंटूला। जखमु-तखमु यूँ कु रिबड़ाट अर सिंटुलौं जन किबचाट, एक हल्ला-रौळी, गळम-गाळी। ख्यौलण दां हो या इस्कूल मा। मास्टरै जांठी यूँ पर ही टूटदी। अर यूँ मा जादा हुस्यार स्या धनुली, एक कांसै जन घनौळी बजदी टय्याँ-टय्याँ, टय्याँ। कबार-कबार त यूँ बाळा छिंज्यटयौं बात इतगा सयांणी ह्वै जांदी कि-

त्वै भ्यासै किलै सौऊं मि कौन सि तू मेरु मालिक छौ। अर सु बोलदू कि तू भ्यास क्या छन मेरी कज्याण ज्व मि तेरी बात मानो। द रे सुणण वळा दंग रै जांदा कि यतना-पितना अर छुवीं द्याखा कतना?

      इस्कूल मा जबार मास्टर धनसिंग तैं क्वी सवाल पूछदू त स्या अगलर्या ह्वै चम्म उठदी अर बोलदी गुरुजी मि बतांदू तै भ्यास तैं नि औंदू। अर जबार धनुली तैं पूछी जांद त तनि सु पैली उत्तर बतान्दू कि स्या भ्यास क्या जाणदी। गुरुजी कबार-कबार मजाक मा बोल्दू कि ऐ मिन तुमारु ब्यौ कैर द्यौण वा, तब्बी हौण तुमारा यीं खिर्तन बंद। फेर द्वीयां मुंडी कैदी करि चुप ह्वै जान्दा छौ।

      पर जन-जन द्वियां बाळापने चपलाट से ज्वानी छबलाट मा पौंछण लग्यां त द्वियूं किलौट किबचाट अर छिंज्याट कमति होण लगी। जनि धनसिंगै बाज म्वटी गरगरी होई त तैकु गिच्चा धनुली तैं सदानी वास्ता टप्प बंद ह्वैगी। अर तनि धनुली बि। जनि वींकि छत्ती बढ़ण लगी तनि वीं कि काँसै घनौळी लाळू टूटीगे हो जनू। स्या अब सब्यूँ दगड़ कम बुलान्दी, हौं हाँ मा जबाब देन्दी। अपणा काम सि काम रखदी। वींका यीं बदलौ से ब्वे-बुबा खुस छया कि हमरी नोनी सुधरी गे निथर बाळापने अति बुलाव आदत देखी ब्वे बोलदी कि स्या पता नि कैका घौर आग लगाली।

      द्वीयां हैइस्कोल सि इन्टर पौंछया, तैकु सेंस जीव विज्ञान छौ अर वींकु आर्ट मा भुगोल। अलैद-अलैद कलास, अब घौर बटे औन्द-जांद, बस आँख्यिूँ मुलाकात।

      अब द्वीयूँ किबचाट त बंद ह्वैगी छौ पर जनि लगुला ठंगरा पर हाथ द्यौण लग्यान तनि न जाण कबारी द्वियूँ नजर एक हैका तैं भलि लगण बैठिन। ब्याळी अबोध बाळा छिंजट्या अब ज्वानी सीढ़ि़यां चड़ण से यी मौन मूक मायै उकाळ नापण लग्याँ। जख धनुली बुबाऽल स्या इन्टर तक ही पढ़ाई अर बेटी माटी बोली गिरस्थी काम मा जौति दिनी वख धनसिंग बारा पास करि कॉलेज मा चलग्यूँ।

      धनसिगैं छुट्टी मा जबार बि द्वियूँ कखिमु भिटवौळी होन्दी त बस नजर मिलौन्दा, नजर झुकौन्दा,  जिट घड़ी नजर मा यी छुवीं-बत हौन्दी। ऐ-आं, खम्म-खुम्म कुछ ना। द्वियां अब कब्बी कठ्ठा नि होन्दा। गौं मा कैका कौ-कारिज मा अगर सु तख हौन्दू त स्या नि औंदी, अर स्या दिखै त सु भाजी जांदो, पर कै दिन क्वी दूर बटे नि दिखैन्दू त भितरै-भितर अधीर, चळविचळा रैंन्दा। बस एक हैका हौणू ऐसास तौंकि जिन्दगी हिस्सा बणण लग्यूँ।

      स्या जै बौण घास उणि जान्दी सु दूर धार बटे वीं तें द्यखणू रैंदो, स्या पुंगड़ा मा धाण करदी त सु कै उच्ची धार मा बैठी वींकी कुटळी देखदू, वीं कु काम पूरा हौण तक जग्वाळ करदू, जनै स्या घौरा बाटा पैटदी सु घौर ऐ संतोष पर अपणी पढ़ै मा मैसी जांदू। स्या पाणी बंठा ल्ये मंगरा जान्दी त सु अपणा खौळा दानणी मा बैठी वींतैं औणी-जाणी द्यखदू।

      अच्छा यु एक तर्फां बथौं नि छौ, बल्कि सौंळी द्वि तरफां छौ हळकणी। जबार तलक सु छुट्टी मा घौर मु रैन्दू स्या भैर-भितर छळकै चटपटकार लकार सि काम-धाण करदी। अर जबार सु इस्कोल चलि जान्द स्या झर्रमनी ह्वै जान्दी। वीं कु मन कै बी काम फर नि लगदू। वीं से कखी ना कखी गलती ह्वै जान्दी। कबार चुलणा उन्द रुवटी फुक्की जान्दी त कब्बी तवा कु रुवटी एकहड़या रै जान्द। कब्बी बौण बटे दथुलिन हाथ लाछी ल्येन्दी त कब्बी गुठ्यारपुन मौळ गाड़द कुटलिन खुट्टी कच्यै देन्दी। जबार सु गौं कि सारी बाटा कौलेज जान्दू त सु अपणा जंगळै सतीर पकड़ी वेका गाड़ी मा बैठण तक इखारी नजर करि द्यौखणी रैंदी। अब ब्वे-बुबा परिसान कि यी तैं क्या ह्वै जांणू यु बगत-बगत फर।

      धनुली ब्वे-बुबा त इतगा चिंता मा ह्वेग्यां कि वा गणत-पूछ तक कन लग्यां। कि ज्वान-जमान नोनी किलै छन चळबिचळ हुयीं। हे प्रभौ ! घौर-बणौं ज्व बि छन सैम ह्वै जावा। बौणें बयाळ, कांठै आंछड़ियां, पाखौं चनैंण्यां, धारै एड़ियां जु बि छन देवियो तुमारु न्यूज-पूज ध्यौला। सतनज्जा का लय्याँ, बारामासी पंय्याँ कि पाती। ऋतु का फल-फूल, सगौड़ियूँ काखड़ी, बाड़ै मिुगरी, लाल-पिंगळा बसतर तुमारा चरणों मा धौरुला, पर यीं नोनी शरेल धीर्गम धैर दया। कैकी नजर, घात-जैकार, द्यबता पठायूँ, गाड़ौ मसाण, रौळयूँ छळभूत ज्व बि लग्यूँ, जै कु बि दोस छन माराज छौळ-निवौळ कैर द्यावा। यीं कि जलमपत्री संगता दियीं चा, तल्ला नागपुर से बंड पट्टी, बधाण से चानफुर-धनपुर तक। जखमु संजोग ऐलो स्यूँ डौला दान द्यूला। पर यु बेलम किलै छौ लगणू ? कखि जलम पत्री नि जुड़णी। लुकांरा सब्बी सतमंगळया बिवै गिनी, एक यीं तैं कख हर्ची सु औंस्या जवैं ?

      द रेऽ ! लाटु जमाना। नोनी छिन पिरेमें ताप मा तप्यौंणी अर व्बे-बुबा छन जगरी पुच्छयारुं मा भटकणा। एक हौर बात छै यूँ मौन मूक मायादारौं माया मा, मायै आग त छै जगणी पर ध्वाँ नौ की चीज नि छौ। अणमणा माथिगा पिरेमी। क्वी छुवीं बत ना। ना क्वी लुक्का-छुप्पी हिलण-मिलण। एकदम लाटौ पिरेम। लाटौ पिरेम बि तब बोली सकदा जब सान-सून हो पर सु बि ना। ना क्वै चिठ्ठी पत्री रंत रैबार, ना फून विडियौ कौल, चैट-वैट कुछ ना। आख्यिूँ बटे ज्यू का सात कूणों तक एक हैकै चाह, समर्पण न्यौछावर। अब कै भैर वळौं तैं सक सुब कनै हौण छौ।

      पर सच्ची बात यु छै कि माया-मुस्क कति भितर खंड कुलाणा उंद बि बंद कैर द्यावा पर वे कि झौळ भैर ऐ यी जांदी। बेटी यूँ हरकतै जैजा ब्वे राजी भौत दिनों बटे ल्यौंणी छयी। वींकि मौन मनसा नौ मैना कौख मा बौकणी वळी ब्वे कने नि बींगदी। बींगणा बाद छुंवी लगी, अर छुवीं त छुवीं हौन्दी भाजण वळी, सु कखी ठौ नि खांदी। बात पुष्कर फर्स्वाणा कंदूड़ा तक पौंछी।

      वखि हैका तरफां कुछ-कुछ सक-सुब थानसिंग पंवार तैं बि हौंणू छौ कि जबार सु घौर औणू जख-तख कै धार, डीप-डीपौं मा किलै रौंणूं गुमसुम बैठियूँ। कैन बोली तुमारु नोनू कवि छन। सु यीं परकति तैं ध्यान लगै बींगदू तब अपणी कविता मा यीं संगसारौ चरेतर ल्यौखदू। कब्बी ना हो तण्मण्यां कवि ज्वा धार-धारों मा गरुड़ जनू बैठयूँ रौंणूं, लोग बिमटणा छन निकज्जू लौफर बोना।

      एक दिन गौं मा कैका ब्यौ कि पार्टी-सार्टी छै होणी। दराम-सराम भी छौ पियूँ सब्यूँ को, लोग अपणा मा मस्त छया। तबार पुष्कर सिंग फर्स्वाण तैं क्या चड़ी कि सु चड़म उठी अर तैन थानसिंग पंवारै कंठी पकड़ी। ऐ घरजवैं खानदान को बीज। जर्रा होशै दवै खौ। अपणी औकात पर रौ। लोग-बाग झड़मण छुडा़ण बैठयां। थानसिंग पंवार चुप्प, कि यार ये कि अर मेरी ना क्वी बात, ना चीत, ना यैकु अर मेरु क्वी औड़ू संतरा कु झगड़ा ना कै उज्याड़-बिजाड़ कु कज्यै।

अरे पुष्कर क्या बात छै भाई ? किलै छौ तू तौं पंवार जी पर फ्वाँबाग बणणूं ?

ये साला को सु कुबीज मेरी धन्ना पर छौ नजर गलाणू, पंवार समझौ अपणा लड़ीक तैं,  निथर मिन तैकि धौंण धड़कै द्यौंण। निरबिज्या कैर द्यौण मिन पंवार मवसी। तैकि पढ़ै डिग्री-सिग्री निकाळ द्यूला द्वी मिलट मा भैर।

ओऽऽ अच्छा ! त यु छिन बात। अब सारा गौं तैं बि पता चली कि यणमण्यां मामलौ छन।

      लोगुन सु पुष्कर थमथ्यै-थुमथ्यै, समझै-बुझै कि पंवार जी धनसिंग तनमण्यां उटंगर्या नोनू नि छन, सु कैका ठठ मुख बि नि चांदू। पढ़ै मा हुस्यार अर बड़या कवि लेखक अर विद्वान विचारक छन। 

      अब तै दिन बटे जबार बि धन्नी घौर औन्दू वे तैं हिदैत मिल्दी कि कख जाण, कख नि जाण। कख उठण कख बैठण। अर धन्नाऽल त बुबा हाथन चटैली मार बी खायी। द रे ! खाली नजर का नजारा मा नखरु काम छौ हौणू। मथि बटी धन्ना (धनुली) कि जलमपत्री कखि नि जुड़णी। वींकु सतमंगळया नक्षतर पुष्कर सिंगा गौळ छौ लग्यूँ। अर जख टिपड़ा जुड़णू बि त तख फर्स्वाण मवसी समझ मा नि छै औणी।

      अब सौजी-सौजी द्वियूँ नजरौं मिलण बि बंद ह्वैगी। पर एक हौका होणू आभास ऐसास सि ब्यौवार उनि। जबार सु घौर औन्दू धनुली व्यौवार अर कामकाज मा उनि चरक-फरक त धनसिंगैं पिरेमें कविता सब्बी ज्वान जुकुड़ियूं मा बाईरल।

 

छैला डाळू कु रिश्तो, उकाळ कु उंदार

भौंरा फूलों कु दगडू, गैंणा कु अगास जन, उनि रिश्ता छ तेरु मेरु।

 

जन अँख्यूँ कु द्योखणू, कंदुड़ीयूँ कु सुणणू

गिच्चो कु बोलणू, ख़ुट्टों कु हिटणू

रसना अर स्वाद का जन, उनि रिश्ता छ तेरु मेरु।

 

जन मुखड़ी अर ऐना, निंद अर स्वेणा

ज्यू अर रीस, कंठ अर तीस

पुटुग अर भूख का जन, उनि रिश्ता छ तेरु मेरु।

 

      समै अपणा मा सरकणु रयूँ। एक तरफां धनुली ब्वे-बुबा नोनी चिन्ता मा सूखणा छया त धनुली निचन्त ह्वै दिनों दिन पूरणमासी जन जून खिलणी छयी जनि कि राजकुमारी रुकमणी तैं विस्वास छौ कि वेकु कृष्ण औलू अर ब्यौ मंडप बटे बि उठै ल्ही जालौ। हैका तरफां धनसिंगल डिग्री पूरी कना बाद बीएड करि अर सु मास्टर बणिगे। अब पंवार मवसी मु एक से एक बड़या रिस्ता औण लग्याँ कि नोनू मास्टर छन।  पर तैन जमै ना करि कि मिन ब्यौ कनै नि। कुटुमदरी पूछदी कि यार तेरी पंसद छन कखि क्वी नोनी त बतौ, पर सु बि चुप्प निचन्त ह्वै समै कु जग्वाळ कन लग्यूँ।

3.

आज ऐगे छौ समै। तबार हल्ला-रौळी अर टौरचौं उज्याळौ झळकीड़ा जन बाटे-बाट तौंका नजीक औण लग्याँ। लोग-बाग़ पुष्कर सिंगा धारा पुंगड़ा कूणा-काणी धनुली तैं चाण लग्यां कि कखि क्वै दुख बिमार, बसग्यालौ बगत कीड़ा पिटिंगै डौर अलैद। लोग किलौट करि धै लगाणा छा। लोगों किलौट सूणी द्वियां मथि धार मा चुप्प सांस रौकि एक हैका पर चिपक्यां छया।

      धनुली ब्वे डाड मारी छै धै लगाणी। ऐ मेरी धन्ना किलै ऐ बाबा तू यीं कुबगत यीं पुंगड़ा। ऐ मेरी दौथर्या बांद कख छिन बाबा तू। ऐ मेरी लाटी औ बा घौर, त्वैतें अब कुछ नि बोलुला।

तबार केन बोली ऐ संजू तेरी गाड़ी मा क्व-क्वौं अयाँ रे आज ?

संजुन सब्बी पसिंजरौं नौ गिणायी, अरे चच्चा सु धन्नी दा बि त छौ ।

हैकू आदिम - औऽ! त आज उड़ियाँ पंछी अपणा घौळ अर हम छाँ यख झपक्वळी लगाणा, चला रे चला। अर सारौ गौं आपस मा गुणमुणाट कन लग्यूँ।

तिसरौ आदिम- चलो रे चलो।  ऐ राजी बौ, पूसू दिदा चिंता ना कौरा नोना-नोनी ज्वान-जमान छिन कन द्या वूं तैं अपणी, भौत साल ह्वैगी वूँ तैं चुपचाप रयाँ। कुछैक दिन मा तौं तैं ढूंढी वापिस बुलै धैन-चैनौ ब्यौ कैर द्यूला। अर पंवार जी आप अब पूसू भै दगड़ अपणी नराजी छवाड़ा, अब तुम द्वियां छांट आबत बणण वळा छन। राजी, पुष्कर अर थानसिंग पंवार सब चुप्प। कुछैक देर मा हल्ला-रौळी गौं तरफां चलग्यौं।

 

ऐ भ्यास चल

कख रे भ्यास

खित्त-खित्त, खित्तऽऽ

अज्यूँ बि मथि अगास मा पूरणमासी जून बादळौं बीच लुक्का-छुप्पी छै कनि अर तै बदळद्यौ उज्याळा मा बारा साल बटी द्वी मौन मायादार एक हैका तैं आरसी अर मुखड़ी जन हैरणा छया।

      तबारी घंटा अद्दा घंटै चुप्पी धनुलिन तौड़ी। धन्नी यार तू सच्ची मा कति ज्ञानी विद्वान बणिंगे, मेरी यति लम्बी तपस्या देणी ह्वेगी आज पर ये शब्दौ अर्थ त बतै दे, जु हम बाळापन बटे एक हैका तैं बोलदा। सु भ्यास क्या ह्वौई ?

धन्नी - भ्यासौ, भ्यास वळु सवाल। आज तक मजाक मा त्वैतें भ्यास बोल्दू छौ पर आज सच्ची मा बींगी कि तू सचिगै भ्यास छन। 

द्वियाँ खित्त-खित्त, खित्तऽऽ

अरे भ्यास उणि क्या पता भ्यासौ अर्थ, धनुली चड़म उठी अर धनसिंगौ हाथ खैंची तखबटे हिटणैं सानी कन लगी। धनसिंग बि चम्म खड़ू उठि, त चल त। अर वीं का कांधिम हाथ धौरी गीत गाणूं लगी।

जगमग जुन्याळी छाळी रात्यूँ मा,
गैंणों भौरी रात का जक-बक मा,
झळमळ जुगनू का उज्याळा मा,
घनघौरी औंसी, की रातियूँ मा,
त्यारा खुट्टा छाप तैं छौपणू रौलू
                        कांठौं को हियूँ यनु गळणू रैलो,
                        पाणी बणि गदन्यूँ मा बगणू रैलो

तिसळी मेरी माया सौंजड़या,
      प्रीत कि तीस मा भटकणू रैलो

 भ्यास – र्निबुद्ध, निर्जन्ड सिद्दो/ सिद्दी, अजाण।

कानी: बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’

जुलाई 2024