1.
ब्याखुनी गौधुली बेला, सौणौं मैंना, सर्री धर्ती-पिर्थी
हरीं-भंरी, भैर-भितर जप्पा-तप्पी, बाटा-घाटा झांड़-झंकार, डानी-कान्यूँ छीड़ा-छंछरौ सुंस्याट,
मुड़ी गाड़-गदनों घुंघ्याट। वली सारी सटयाड़ी जख साटी झंगौरु चौपत्या अर पल्ली सार कुद्याड़ी
द्वीपत्या, कुछैक दिन पैली यी क्वौदै ग्वड़ै सौकि बेटी ब्वारियूँन कमर सिद्दी करि छौ।
अजक्याल गौं ख्वाळौं मा मनखी कमति दिखणा छया, किलैकि गरमी छुट्टी काटी नौकरी वळा नौकरी
फर, स्कूल्या इस्कोल, अर बाकी घर्रा छानी मरुड़ा लग्याँ छा गाजी-बखरौं ल्यैकि। अब सटैड़ियूँ
मा द्वीग्वौड़ लगौंण बैठियां छा लोगबाग। ब्याखुन्दा बगत कुयैड़ी गौं-गुठ्यार अर सारियूँ
मा छौ कब्बी लूकणी, कब्बी लौंकणीं। अर तनि शीलू घाम छौ लुक्का-छुप्पी कनू।
ब्वे जंगळा मा छै सुप्पा मा कुछ नाज फैटणी अर
स्या खौळा डीप पर छै बैठीं सुद्दी दाथुली टुकू बदी ढुंगौं कटकै टेमपास कनि। ऐ गौ, तू क्या छन आज बल्द बैच्यां जन निचन्त बैठीं
? पुंगड़ा बि नि गै तू। वींन क्वै जबाब नि दिनी ब्वे तैं।
तबारि गौं मुड़ी सड़की बैंड फर प्वाँऽऽ प्वाँऽऽ.....।
गाड़ी हौरन सूंणी वींन सट्ट जंगळा तौळ बटे कुटळी हाथ ल्यैनी अर दथुली कर्छुळी कुचाड़ी
अर धनतुरन भाजिन तै धाराऽ पुंगड़ा तर्फां।
ऐ
ले! ऐ गौ ! ऐ खड्यौण्यां, ऐ धन्ना कख छै तू यीं कुबगत पुंगड़ा भाजणी ? ब्वे धै लगाणी
रैयी मथि बटे अर स्या मुड़ी बटे पुंगड़ा तरफां दनकौंणी रै।
तै दिन वींका कंदूड़न दूर बटी सूणी छौ कि सु आज
घौर औणू। अर आज दिन बटी अबार तक क्वी गाड़ी गौं मा नि ऐ छौ। अर सु औन्दू बि यीं बगत
छौ सदानी। त वीन पक्कू मन बणैंयाली छौ कि आज या त वार या त पार। अगर वेन बौक मारी त
मिन तखी धारा पुंगड़ा सामणी भ्यौळ पाखा फाळ मारी द्यौण।
स्या दनका-दनकी बीसैक मिलट मा धारा पुंगड़ा पौंछिन
अर जिबलाणा बीच, बाटा एक कुमच्याड़ा मा बैठी तैकि जग्वाळ कन लगी। सु सड़की बैंडौ बाटू
तयी पुंगड़ा ह्वै गौं मा औन्दू छौ।
कुछैक देर बाद सु पीठी फर एक बैग अर हथ मा छतरी
ल्यै मुंड कैदो करि छौ उकाळ लग्यूँ। तबार तै कुमच्याड़ा मा स्या झप्प तैका समणी परगट
ह्वैगी। अर वींन द्वी हाथ फैले तैका बाटा मा बाड़ करि रस्ता रोकी। तैन मुंड खड़ू करि
देखी त हक्क बक्क। अरे ! यनु कनै ? जैकि जुबान इतिगा साल बटे बंद छै सु कने परगट ह्वै
आज, यीं तैं मेरु औण केन बतायी ? जिट घड़ी सोचणा बाद तैन बुलाणौं सौंस करि।
ऐे
भ्यास।
वींन
बि तप्प जबाब मा - ऐ भ्यास।
सु
- क्व च भ्यास ?
स्या
बी - क्व च भ्यास।
सु-तू
छिन।
स्या
- तू छिन।
सु
गिच्चा फर अंगुळी लगै - चुप्प ?
स्या
बि उनि - तू चुप्प ?
खित्त-खित्त,
खित्तऽऽ.......। द्वीयाँ दगड हैंस्यां। वेंन फट्ट पीठी बैग भुयाँ उतारि अर वीं का सामणी
कमर पे हाथ धरी तड़तड़ू खड़ू ह्वैगी। अब द्वियाँ खड़ा-खड़ी आँखा कताड़ी एक हैका आँख्यिूँ
मा उतन लग्याँ। एकदम स्याऽन-चुप्प मौन। जनु इतिगा साल बटे चलणू छौ। कुछैक मिलट बाद
द्वियूँ आँखी टबलाण लगीं। पर फैसल नि ह्वैन कि क्व छन भ्यास, यु सवाल द्वीयूँ जिंदगी
मा अज्यूँ तलक बेउत्तर छौ।
जब द्वियाँ मौन से टस्स-मस नि ह्वैन त वींन झप्प-झप्पाक
मारि वैका सांखा फर, अर वैका कांधिम अपणु सरेल छौड़ी हिंकरा-फिंकर रुण लगी। तैन बि चप्पऽ
अंगवाळ बौटि अर स्या अपणा छत्ती फर चिपकाई। अब द्वी तर्फां बटि मायै रुद्री रबै होण
लगी। यथ्या साल बटे ज्वा उमाळ समाळयूँ छौ द्वियूँ कु वा भभ्कै कि खत्यौण लगि। खूब देर
तक द्वियां एक हैके साँखी टंग्याँ अतिरेक पिरेमा उदगार मा डुब्याँ रयाँ।
तबार तक घाम धार पोर चलिग्यै छौ अर कुयेड़िन संगता
अपणू जाळ फैल्याली छौं। हफार बंज्याणां तरफां निन्यारौन सांध्य भजन सुरु करियाली छौ।
अर तै पुंगड़ा कुमच्याड़ा मा द्वी मायादार एक हैके साँखी टंग्याँ एक हैके मायै ठौ ल्यौंणा
छया। सुकर छौ कि तबार तै बाटा क्वी नि गुजरी निथर फेर जातर-पातर वळी बातन सर्रो गौं
उच्याणू छौ।
लगभग अद्दा घंटा तक सु उमाळ पूरौ खत्यौणा बाद
जब द्वियाँ हळका ह्वैन त धन्नी (धन सिंगल) बोली, लाटी हम द्वियां ही भ्यास छन, ज्व
बारा साल लगि हमुतैं ढै आखर बोन मा। सु गिरीश सुन्द्रीयाल जी गीत गुणगुणाण लग्यूँ।
दूर
उड़ी जौला चल, हे मेरी चकौरा
चल
तौं डांडयूँ पोर सच्ची, हम घौल बणौंला
चल
मेरी धनुली अब अब्यौर ना कौर, छांट चल यख बटे। चल चलि जौला वीं माया कनूड़, जख हम द्वीयाँ
होला अर होला यीं परकति का सब्बी मायादार। जख रंदिन बांज-बुरांसै माया, बुरांस-अंयारै
माया, अंयार-उदीसै माया, तैलिंग-खौरु, राग-थुनैरै माया अर यूं सब्यूं तौंळ उन्यांण,
ल्यंकुड़ा अर कति परकार का वनस्पतियूँ पिरेम संगसार बसदू। मनख्यूँ कुलैं तौळ हमरी माया
उर्जित हो आसा नि छन। चलि जौला वख, जख बिगैर रंज-राड़, कज्यै-झगड़ा, खिर्स-खिर्त का हैंसी
खैली परकति का पिरेम अपणी जिंदगी ज्यूणान जुग बटे। अर यूँका दगड़ पिरेमा गीत गांदा घुघता-घुघती,
कफू-हिलांस अर तमाम चखुला-चखुल्याँ, घ्वैड़-काखड़ जीबन नमाण। सु अपणू गीत गुणगुणाण लग्यूं।
चखुलौं जन आगास मा उड़ौला,
कफु हिलांस बणि खुद मिटौला,
निरपँखी माया मा पँख लगै जा,
द्वियूँ की प्रीत तैं, उड़ान द्ये जा,
मायादार झुकुड़ी मा उदंकार रैलो।
कांठियूँ को हियूँ
यनु गळणू रैलो,
पाणी बणि गदन्यूँ
मा बगणू रैलो।
धनुली ध्यान तैकि छुवीयूँ अर गीत पर ना बल्कि
एकटक तैकी मुखड़ी पर छौ, कि घूळणैं चीज होन्दी त घळऽऽ घूळी ल्यौंदी अर सदानी वास्ता
अपणा ज्यू मा पांजी देन्दी। अर सु धनसिंग मायौ वेदांग खोली बैठग्यूँ छौ बाट-बाटी।
धनसिंगल वींकु हथ खैंची अर बाटा से अबाटा ल्हीग्यौं
ओ पुंगडां मथि एक हैकी धार मा, जखमु पुंगडौ आखिर किनारौ छौ अर तख बटे बौं तर्फां चुरांत
पाखु मुड़ी गाड़ तक। मुड़ी बसग्याळी गाड़ै सुंस्याट अब हौर तेज ह्वैगी छौ किलैकि अब सर्री
पृथिन अंध्यारौ ढक्याण औड़याली छौ। बादळ ओऽ मथी द्यौगणी डाने तरफां कठ्ठा ह्वैगे छौ।
द्वियाँ गाड़ै तरफां मुख करि बैठयां। धनसिंगल अपणी बात अग्नै बढ़ै।
अब तू यी बतौ पगली हम मनख्यूँ संगसार मा क्व
छिन असली मायादार ? अरे यीं मृत्युलौक मा मायादार
नि रिस्तादार छन सब, अर रिश्तादारी जीयी नि जान्दी बल्कि निभै जान्दी। रिस्तादार औन्दा
जान्दा रौंदा, पिरेमियूँ जना जुग-जुग तलक दगड़ नि रौंदा। जन सु द्यौगणी डानो अर जंगळ,
सु गाड़ अर पाणी, सुर्ज अर दिन, बादळ अर बर्खा, जून अर रात, तेन अगासै तरफा सान करि।
किलैकि अब अगास मा कुछैक जगा बादळ छंटी सौणैं काळी राति कु मिथ्या तौड़ी पूरणमासी जून
दप्प दमकौण लगीं छै। अर वीं जूनी उज्याळा मा धनुली मुखड़ी हौर दमकौणी छै।
धनसिंगल
सवाल करि । बोल अग्नै क्या इरादू छिन ले सतमंगळया ?
इरादा
यन छ रे औंस्या कि। धनुली मुळळ हैंसी अर फेर झप्प तैका सांखी, जन तिसाळी गाजी पाणी
तलौ फर चिपकेन्दी।
द चुप रौ, ना लगौ अपणी तै कवि वळी भाषा। मिउणी
पता नि तति मायै गणित, पिरेमों विज्ञान। बस मि त इतिगा जणदी कि तू मेरु छन। अर तेरी
मि छौं कि ना, तू जाण। निथर त्यारा सामणी मिन सु सामणी पाखा उन्द फाळ मारी द्यौण। पैली
ये जलम नि त वे जलम मा सयी।
धनसिंगल
चप्प हाथ वींका गिच्चा फर धरी अर साँखी बटे स्या अलग कैर वीं कि मुखड़ी द्वी हाथ्यूँ
बदै थामी, ऐ भ्यास अग्नै ना बोल्याँ। भ्यौळ फाळ हमारु दुश्मन बि ना मारियां। अरे अब
जग्वाळ खतम, मौन मायै जातरा खतम। अर राधा कृष्णें पिरेम जातरा सुरु।
धनुलिन
अग्नै छुवीं बड़ै, अच्छा ज्व बात तु बिंगाणू छौ सच्चा मायदारों अर पिरेमियूँ की त क्या
तू तनु मालिक होलू या पल्ला ख्वळा सगरामी बौ अर मंसाराम भैजी जन, कि एक हैका तैं बिरै
च्वळथ्या-म्वळथ्या अर बाकी टेम लठ्ठम लात।
औ! मेरा मौने ल्यौणि कि सच्ची ? त्वै क्या लगणू।
अरे भ्यासौ स्वौच अगर मि दुनियाँ का जन वासना कु पुजारी रैंदो त यथ्या साल जग्वाळ नि
करदू। अडिग जी कु बोन छौ कि - पिरेम मनाणू जर्रा सि /श्रद्धाऽक फूलों
जर्वत होन्द/ बाकी/ वासना पुळयाणू मनखी/ इच्छाऽक हजार टूंणा कना
रैन्द।
अर दुन्यां चारै
यति साल मा मि क्या-क्या नि कैर सकदू छौ। पर मिन सच्चा पिरेमें परिभाषा तैं खंडित नि
हौण दिनी। जीतू अर
भरणा का जन हमारी पिरेम कथा अधुरी नि रैली, त्वै उणि मि गजू कि मलारी हौंण वळी नौबत
नि औण द्यौला। कुछ बि हो अब अग्नै तेरा अर मेरी माया बीच क्वी अड़चन आली त मि
मालूशाही बणि त्वै राजुला जनु जीती ल्यौला। तेरी सतमंगल्यै दसा मि औंस्या उणि यी सुफल होणू हौलू
मि जाण, निथर आज तक तिन कै हैके ह्वै जाण छौ।
अगर
ह्वै जान्दी त तू क्या करदू ?
करदू
तेरो कपाळ ! क्या करदू, जन तुलसीदासन करि।
ओ
! मि गलती कनि म्येल्यौ। भारता वास्ता एक हौर तुलसीदास मिलण से त नि रोकणी ? खित्त-खित्तऽऽ।
मतलब भ्वोळ मितैं बिगैर मातृत्व कु मीरा जनि रिती ज्वग्याण रौण पड़लू म्यैल्यौ।
ना रे पगली ना, यन बतौ मीरा टेम पर कृष्ण छौ?
ना नौ। मीराऽन शाररिक भौग से परे कृष्ण दगड़ पिरेम करि, मतबल मनसा वाचा अर कर्मणा सि
समर्पित पति भक्ति कु अनन्य पिरेम। जख तन-मन सब समर्पित ह्वै जान्द त वीमा शाररिक भौगे
गुंजैस नि रैन्दी, किलैकि यामा सदानी मानसिक धीत तृप्ति रैंदी अर जख मानसिक धीत रैंदी
त तख ना शारीलै भूख जगदी ना मन तैं भौगे इच्छा हौंदी। पिरेम मा तृप्ति ना हो त सच्चू
पिरेम नि ह्वै सकद।
दामपत्य मा ज्वा असली पिरेम हौण चैंद सु पिरेम
रौलू हमारौ। नंगा-नरवाण खाली संबन्धौं वास्ता नि बल्कि मन करम वचन से भी खुला नंगा। क्वै सक-सुब ना, एक हैका तैं
ताळु-कूंजी ना, तन-मन अर ज्यू का डवार सदानी उगाड़या रैला एक हैका तैं। अडिग जी कु बोन
छौ कि- सच्चू पिरेम/एक फूकऽन बजद/जौंळा मुरुली सुर छन/ यू ही अनन्त नाद/ अनहद मा/ पौंछणों बाटू छन।
ऐ
वेदांतचारी ! मि नि समझदी तेरी स्या दार्शनिक छुवीं। तू यनु बतौ यीं छत्ती मा ममतौ
दूध कबैर तलक पौजलु।
धनसिंग
फैर सुरु ह्वैग्यूं -
फजल
को घाम रूमुक होण तक,
बौंणचर
गाजी किलौठा बंधण तक,
पंछियूँ
का घौल, बासा औंण तक,
निन्यारियूँ
कु भजन, भजण तलक,
मैं
तेरी जग्वाळ मा बैठीयूँ रौलू।
कांठियूँ
को हियूँ यनु गळणू रैलो,
पाणी
बणि गदन्यूँ मा बगणू रैलो।
अज्जी कवि माराज जी ! चुप रावा ! तेरी बातौ मतलब
बींगणी छन, कि तू मितैं गिरस्थ्याण ना जोग्यांण बणाण चान्दू। भक्ति करा मनैं धीत राखा
अर शरेल सुखावा। विरह आग भी पढ़ी छौ मिन कखि, अपणू दृष्टांत बतालू ये फर कुछ।
धन
सिंगल झट्ट द्वी हाथन मुख बूजी, अच्छा त यु बात छन। अरे भ्यासौ ! तू क्या चिताणी मि
खाली कितब्यूँ मा डुब्यूँ रयूँ। अर वैल चप्प वींका हौंठड़यूं पर अपणा हौंठ धरी। तेरी
आग छै रोकीं त मेरी बंणाग। सुद्दी नि सैयी मिन सु मौन मूक वेदना यति साल।
ओ ! त मैं यी भ्यास छौ म्येल्यौ। मिन नि जाणी
जै तैं मि अजाण निर्जण्ड खस्या छौ समझणी सु यति बड़ौ पिरेमों ज्ञानी-ध्यानी पुज्यारी
होलू। खित्त, खित्त, खित्तऽऽ। अब ज्ञान यी सुणोंलू कि अग्ने बाटू बि हिटालू ?
सु
मुल्ल हैंसी। अरे मास्टर छौं ज्ञान बि द्योलू बिज्ञान बि बतौलू अर पिरेमा बाटा ही ना
टुकू बि पौंछालू। चल, तैन घनुली हाथ पकडी अर हिटणू खौंचि। सु बैठीं रयी।
वातावरण मा बदळद्यौ साफ उज्याळु छौ होयूँ। धनुलिन
बोली, ऐ ज्ञानी क्या जोग्यूँ जन मांगी खवोण ठौरी तेरु ? गिरस्थी नि जम्पण ? अकल से
काम ल्यौ। घौर बटे कुछ सामळ-तामळ रखण पड़लौ, कुछ पैंसा-पाई, चोरी सई पर यति त हमारु
हक छैं छिन तै कूड़ी पर कि अपणू हिस्सा निकाळी सकदा।
अरे यार तै बातै चिन्ता न कौर मेरु सब बंदोबस्त
करियूँ, सरकार साठ हजार तनखा द्यौणी त्यारा धनसिंग उणि। तिन क्या सोचि मि तबार बटे
सुद्दी छौ लाटो जनु मौन रयूँ। यीं छुट्टी यांका बाना छौ अयूँ, पर आज त्वै भ्यासल पैली
अगल्यार चूंडीयाळी, निथर दिसाण बटे उच्याणू पलान छौ मेरु। अच्छा यनु बतौं कि त्वै उणि
कैल बताई कि मि आज औंणू ?
पौथुल्यौन,
तौं बादळौन। जबार बटे तू पौड़ी पोस्टिंग गयूँ तबार बटे मेरु धकध्याट हौर बढ़न लग्यूँ,
अर भितरै-भितर लोग छुवीं बि लगाणा छया कि सु तखि कै अपणा मास्टरणी सौंजड़या दगड़ कनू
बल ब्यौ। सौत्या ढा बदिन म्यार धीरजल जबाब दिनी कि अब नि सयैन्दू, सब्बी बंधने बर्त
तौड़ी आज त्वै दगड़ आर पारै लड़ै लड़णा मनसा सि तैयार ह्वौई।
अच्छा
! कौन सि त्वै दगड़ मेरी करार छै करिं।
ऐ
भ्यास मास्टर ! मितैं साईक्लौजी इस्पेलिंग पता नि कि तैमा पैलु लेटर ‘पी’ छन या ‘एस’।
पर तै चौदा सालै उमर बटे तेरी आख्यूँ रैबार बी जणदी अर करार बि। सच्ची बतौ अब क्या
बिचार छ ? आज रात कख जाण?
अरे
ठौ खौ दों जरा, बारा सालै विरह मायै थौक बिसाण दे, बाकी ह्वै जालू जन बि होलू थै ल्यौला।
अब तेरु हाथ मेरा हाथों सि छूटी नि सकदू इतिगा गारंटी मेरी चा। अर तैन चट्ट एक भुक्की
लीनी वीं कि गुंदख्यळी हाथ्यूँ कु।
धनुलिन
सरमांदी बोली मेरी जग्वाळ भगवानल सैम करियाली, हे बैरासकुण्ड मादेव हमारु घौर बसण सयी
तेरा मंदिर मा पाच सेरौ रौंट काटुला अर एक कूलौ प्रसाद चढ़ौला। अर सु फेर पळकौंदी तैका
सांखी लगिन। जनानी पिरेम मा चट्ट भीजण अर गळण वळी जु होन्दी। स्या ज्यू लगण फर पिरेमें
अति तक पौंछी जान्दी वा इलै कि भगवानै रचना मा नारी रूप पिरेम तैं अंत्यौदय तक पौंछांण
वळी जु हौन्दी। पिरेमें साक्षात मूर्ती छन क्वी त स्या मातृशक्ति छन। चै मर्द जात अपणी
वासना वास्ता पिरेमों ढोंग किलै ना करौ पर स्या बात अर विस्वास पर अपणू सर्वस्व अर्पण
कैरी देन्दी।
आज
द्वियाँ सालों का विरह वियोगा विलाप सि मिलन संजोगा ऐसास मा छा ख्वयां। धनुली कु धनसिंगा नौर मा मुंड छौ धरयूं अर धनसिंगौ
वीं कु हाथ अपणा हथगुळयूं मा थामी छौ। अर धनुली तैं पिरेमसागर सुणैं सुखसागर छौ देणू।
हौर-पौर घासा जिबलाण मा मिंढखौं छौ एक टटराट
मचायूँ अर झळकीड़ा छां आखिर द्वी सौ गजै लड़ै लड़णा जबर कोसिस करि कि, सौंणें काळी रातौ
अंध्यारु हमुल जीतणैं छ। तौं पिरेमियूँ मिलन देखी मथि अगास मा बादळ बि खुसी बदिन धींगा-मस्ती
छौ कना, अर जून लुका-लुकी तौंका प्रेमालाप देखी छै सरमाणी-
कि
तबारी गौं तरफां बटे हल्ला रौळी सुण्यौंण बैठयूं, सु हल्ला रौळी कुछ-कुछ बिंगौण मा
औण लगी छौ, अरे अब्बी त स्या अपणा खौळे दानेण मा छै बैंठी। ऐ चला रै चला सु धन्ना गुम
छौ बल। गौ तरफां नजर मारि त भिज्यां टौर्चों उज्याळु तौंका तरफां छौ औणा।
2.
धनुली अर धनसिंग द्वियां एक विरादरी का याने
जजमान। जात अलैद छै, धनुली फर्स्वाणें बेटी अर धनसिंग पंवार खानदानों। धनसिंगौ बुढया
दादा यूँ फर्स्वाणां भ्यड़ा मा छौ घरजवैं अयूं कै जमाना मा। अब चौथी पीड़ी छै चलणी। धनुली
अर धनसिंगौं दुध त एकी छौ पर बंस अलैद, बंस अलैद हौंण सि मुंडैत नि छौ।
द्वियाँ बळापना सौंजड़या, घौर, बण, इस्कोल सब्बी
जगा दगड़ हिटण, दगड उठण-बैठण अर ख्यौलण। अर एक बात हौर छै यूँ द्वीयूँ मा कि सौंजड़या
त गौं का हौर नानतिन बि छया पर यूँ द्वी हौरों से अंगळता ? अंगळता इलै कि द्वी एक नासी
सिंटूला। जखमु-तखमु यूँ कु रिबड़ाट अर सिंटुलौं जन किबचाट, एक हल्ला-रौळी, गळम-गाळी।
ख्यौलण दां हो या इस्कूल मा। मास्टरै जांठी यूँ पर ही टूटदी। अर यूँ मा जादा हुस्यार
स्या धनुली, एक कांसै जन घनौळी बजदी टय्याँ-टय्याँ, टय्याँ। कबार-कबार त यूँ बाळा छिंज्यटयौं
बात इतगा सयांणी ह्वै जांदी कि-
त्वै
भ्यासै किलै सौऊं मि कौन सि तू मेरु मालिक छौ। अर सु बोलदू कि तू भ्यास क्या छन मेरी
कज्याण ज्व मि तेरी बात मानो। द रे सुणण वळा दंग रै जांदा कि यतना-पितना अर छुवीं द्याखा
कतना?
इस्कूल मा जबार मास्टर धनसिंग तैं क्वी सवाल
पूछदू त स्या अगलर्या ह्वै चम्म उठदी अर बोलदी गुरुजी मि बतांदू तै भ्यास तैं नि औंदू।
अर जबार धनुली तैं पूछी जांद त तनि सु पैली उत्तर बतान्दू कि स्या भ्यास क्या जाणदी।
गुरुजी कबार-कबार मजाक मा बोल्दू कि ऐ मिन तुमारु ब्यौ कैर द्यौण वा, तब्बी हौण तुमारा
यीं खिर्तन बंद। फेर द्वीयां मुंडी कैदी करि चुप ह्वै जान्दा छौ।
पर जन-जन द्वियां बाळापने चपलाट से ज्वानी छबलाट
मा पौंछण लग्यां त द्वियूं किलौट किबचाट अर छिंज्याट कमति होण लगी। जनि धनसिंगै बाज
म्वटी गरगरी होई त तैकु गिच्चा धनुली तैं सदानी वास्ता टप्प बंद ह्वैगी। अर तनि धनुली
बि। जनि वींकि छत्ती बढ़ण लगी तनि वीं कि काँसै घनौळी लाळू टूटीगे हो जनू। स्या अब सब्यूँ
दगड़ कम बुलान्दी, हौं हाँ मा जबाब देन्दी। अपणा काम सि काम रखदी। वींका यीं बदलौ से
ब्वे-बुबा खुस छया कि हमरी नोनी सुधरी गे निथर बाळापने अति बुलाव आदत देखी ब्वे बोलदी
कि स्या पता नि कैका घौर आग लगाली।
द्वीयां हैइस्कोल सि इन्टर पौंछया, तैकु सेंस
जीव विज्ञान छौ अर वींकु आर्ट मा भुगोल। अलैद-अलैद कलास, अब घौर बटे औन्द-जांद, बस
आँख्यिूँ मुलाकात।
अब द्वीयूँ किबचाट त बंद ह्वैगी छौ पर जनि लगुला
ठंगरा पर हाथ द्यौण लग्यान तनि न जाण कबारी द्वियूँ नजर एक हैका तैं भलि लगण बैठिन।
ब्याळी अबोध बाळा छिंजट्या अब ज्वानी सीढ़ि़यां चड़ण से यी मौन मूक मायै उकाळ नापण लग्याँ।
जख धनुली बुबाऽल स्या इन्टर तक ही पढ़ाई अर बेटी माटी बोली गिरस्थी काम मा जौति दिनी
वख धनसिंग बारा पास करि कॉलेज मा चलग्यूँ।
धनसिगैं छुट्टी मा जबार बि द्वियूँ कखिमु भिटवौळी
होन्दी त बस नजर मिलौन्दा, नजर झुकौन्दा, जिट
घड़ी नजर मा यी छुवीं-बत हौन्दी। ऐ-आं, खम्म-खुम्म कुछ ना। द्वियां अब कब्बी कठ्ठा नि
होन्दा। गौं मा कैका कौ-कारिज मा अगर सु तख हौन्दू त स्या नि औंदी, अर स्या दिखै त
सु भाजी जांदो, पर कै दिन क्वी दूर बटे नि दिखैन्दू त भितरै-भितर अधीर, चळविचळा रैंन्दा।
बस एक हैका हौणू ऐसास तौंकि जिन्दगी हिस्सा बणण लग्यूँ।
स्या जै बौण घास उणि जान्दी सु दूर धार बटे वीं
तें द्यखणू रैंदो, स्या पुंगड़ा मा धाण करदी त सु कै उच्ची धार मा बैठी वींकी कुटळी
देखदू, वीं कु काम पूरा हौण तक जग्वाळ करदू, जनै स्या घौरा बाटा पैटदी सु घौर ऐ संतोष
पर अपणी पढ़ै मा मैसी जांदू। स्या पाणी बंठा ल्ये मंगरा जान्दी त सु अपणा खौळा दानणी
मा बैठी वींतैं औणी-जाणी द्यखदू।
अच्छा यु एक तर्फां बथौं नि छौ, बल्कि सौंळी
द्वि तरफां छौ हळकणी। जबार तलक सु छुट्टी मा घौर मु रैन्दू स्या भैर-भितर छळकै चटपटकार
लकार सि काम-धाण करदी। अर जबार सु इस्कोल चलि जान्द स्या झर्रमनी ह्वै जान्दी। वीं
कु मन कै बी काम फर नि लगदू। वीं से कखी ना कखी गलती ह्वै जान्दी। कबार चुलणा उन्द
रुवटी फुक्की जान्दी त कब्बी तवा कु रुवटी एकहड़या रै जान्द। कब्बी बौण बटे दथुलिन हाथ
लाछी ल्येन्दी त कब्बी गुठ्यारपुन मौळ गाड़द कुटलिन खुट्टी कच्यै देन्दी। जबार सु गौं
कि सारी बाटा कौलेज जान्दू त सु अपणा जंगळै सतीर पकड़ी वेका गाड़ी मा बैठण तक इखारी नजर
करि द्यौखणी रैंदी। अब ब्वे-बुबा परिसान कि यी तैं क्या ह्वै जांणू यु बगत-बगत फर।
धनुली ब्वे-बुबा त इतगा चिंता मा ह्वेग्यां कि
वा गणत-पूछ तक कन लग्यां। कि ज्वान-जमान नोनी किलै छन चळबिचळ हुयीं। हे प्रभौ ! घौर-बणौं
ज्व बि छन सैम ह्वै जावा। बौणें बयाळ, कांठै आंछड़ियां, पाखौं चनैंण्यां, धारै एड़ियां
जु बि छन देवियो तुमारु न्यूज-पूज ध्यौला। सतनज्जा का लय्याँ, बारामासी पंय्याँ कि
पाती। ऋतु का फल-फूल, सगौड़ियूँ काखड़ी, बाड़ै मिुगरी, लाल-पिंगळा बसतर तुमारा चरणों मा
धौरुला, पर यीं नोनी शरेल धीर्गम धैर दया। कैकी नजर, घात-जैकार, द्यबता पठायूँ, गाड़ौ
मसाण, रौळयूँ छळभूत ज्व बि लग्यूँ, जै कु बि दोस छन माराज छौळ-निवौळ कैर द्यावा। यीं
कि जलमपत्री संगता दियीं चा, तल्ला नागपुर से बंड पट्टी, बधाण से चानफुर-धनपुर तक।
जखमु संजोग ऐलो स्यूँ डौला दान द्यूला। पर यु बेलम किलै छौ लगणू ? कखि जलम पत्री नि
जुड़णी। लुकांरा सब्बी सतमंगळया बिवै गिनी, एक यीं तैं कख हर्ची सु औंस्या जवैं ?
द रेऽ ! लाटु जमाना। नोनी छिन पिरेमें ताप मा
तप्यौंणी अर व्बे-बुबा छन जगरी पुच्छयारुं मा भटकणा। एक हौर बात छै यूँ मौन मूक मायादारौं
माया मा, मायै आग त छै जगणी पर ध्वाँ नौ की चीज नि छौ। अणमणा माथिगा पिरेमी। क्वी छुवीं
बत ना। ना क्वी लुक्का-छुप्पी हिलण-मिलण। एकदम लाटौ पिरेम। लाटौ पिरेम बि तब बोली सकदा
जब सान-सून हो पर सु बि ना। ना क्वै चिठ्ठी पत्री रंत रैबार, ना फून विडियौ कौल, चैट-वैट
कुछ ना। आख्यिूँ बटे ज्यू का सात कूणों तक एक हैकै चाह, समर्पण न्यौछावर। अब कै भैर
वळौं तैं सक सुब कनै हौण छौ।
पर सच्ची बात यु छै कि माया-मुस्क कति भितर खंड
कुलाणा उंद बि बंद कैर द्यावा पर वे कि झौळ भैर ऐ यी जांदी। बेटी यूँ हरकतै जैजा ब्वे
राजी भौत दिनों बटे ल्यौंणी छयी। वींकि मौन मनसा नौ मैना कौख मा बौकणी वळी ब्वे कने
नि बींगदी। बींगणा बाद छुंवी लगी, अर छुवीं त छुवीं हौन्दी भाजण वळी, सु कखी ठौ नि
खांदी। बात पुष्कर फर्स्वाणा कंदूड़ा तक पौंछी।
वखि हैका तरफां कुछ-कुछ सक-सुब थानसिंग पंवार
तैं बि हौंणू छौ कि जबार सु घौर औणू जख-तख कै धार, डीप-डीपौं मा किलै रौंणूं गुमसुम
बैठियूँ। कैन बोली तुमारु नोनू कवि छन। सु यीं परकति तैं ध्यान लगै बींगदू तब अपणी
कविता मा यीं संगसारौ चरेतर ल्यौखदू। कब्बी ना हो तण्मण्यां कवि ज्वा धार-धारों मा
गरुड़ जनू बैठयूँ रौंणूं, लोग बिमटणा छन निकज्जू लौफर बोना।
एक दिन गौं मा कैका ब्यौ कि पार्टी-सार्टी छै
होणी। दराम-सराम भी छौ पियूँ सब्यूँ को, लोग अपणा मा मस्त छया। तबार पुष्कर सिंग फर्स्वाण
तैं क्या चड़ी कि सु चड़म उठी अर तैन थानसिंग पंवारै कंठी पकड़ी। ऐ घरजवैं खानदान को बीज।
जर्रा होशै दवै खौ। अपणी औकात पर रौ। लोग-बाग झड़मण छुडा़ण बैठयां। थानसिंग पंवार चुप्प,
कि यार ये कि अर मेरी ना क्वी बात, ना चीत, ना यैकु अर मेरु क्वी औड़ू संतरा कु झगड़ा
ना कै उज्याड़-बिजाड़ कु कज्यै।
अरे
पुष्कर क्या बात छै भाई ? किलै छौ तू तौं पंवार जी पर फ्वाँबाग बणणूं ?
ये
साला को सु कुबीज मेरी धन्ना पर छौ नजर गलाणू, पंवार समझौ अपणा लड़ीक तैं, निथर मिन तैकि धौंण धड़कै द्यौंण। निरबिज्या कैर
द्यौण मिन पंवार मवसी। तैकि पढ़ै डिग्री-सिग्री निकाळ द्यूला द्वी मिलट मा भैर।
ओऽऽ
अच्छा ! त यु छिन बात। अब सारा गौं तैं बि पता चली कि यणमण्यां मामलौ छन।
लोगुन सु पुष्कर थमथ्यै-थुमथ्यै, समझै-बुझै कि
पंवार जी धनसिंग तनमण्यां उटंगर्या नोनू नि छन, सु कैका ठठ मुख बि नि चांदू। पढ़ै मा
हुस्यार अर बड़या कवि लेखक अर विद्वान विचारक छन।
अब तै दिन बटे जबार बि धन्नी घौर औन्दू वे तैं
हिदैत मिल्दी कि कख जाण, कख नि जाण। कख उठण कख बैठण। अर धन्नाऽल त बुबा हाथन चटैली
मार बी खायी। द रे ! खाली नजर का नजारा मा नखरु काम छौ हौणू। मथि बटी धन्ना (धनुली)
कि जलमपत्री कखि नि जुड़णी। वींकु सतमंगळया नक्षतर पुष्कर सिंगा गौळ छौ लग्यूँ। अर जख
टिपड़ा जुड़णू बि त तख फर्स्वाण मवसी समझ मा नि छै औणी।
अब सौजी-सौजी द्वियूँ नजरौं मिलण बि बंद ह्वैगी।
पर एक हौका होणू आभास ऐसास सि ब्यौवार उनि। जबार सु घौर औन्दू धनुली व्यौवार अर कामकाज
मा उनि चरक-फरक त धनसिंगैं पिरेमें कविता सब्बी ज्वान जुकुड़ियूं मा बाईरल।
छैला डाळू कु रिश्तो, उकाळ कु उंदार
भौंरा फूलों कु दगडू, गैंणा कु अगास जन, उनि रिश्ता
छ तेरु मेरु।
जन अँख्यूँ कु द्योखणू, कंदुड़ीयूँ कु सुणणू
गिच्चो कु बोलणू, ख़ुट्टों कु हिटणू
रसना अर स्वाद का जन, उनि रिश्ता छ तेरु मेरु।
जन मुखड़ी अर ऐना, निंद अर स्वेणा
ज्यू अर रीस, कंठ अर तीस
पुटुग अर भूख का जन, उनि रिश्ता छ तेरु मेरु।
समै अपणा मा सरकणु रयूँ। एक तरफां धनुली ब्वे-बुबा
नोनी चिन्ता मा सूखणा छया त धनुली निचन्त ह्वै दिनों दिन पूरणमासी जन जून खिलणी छयी
जनि कि राजकुमारी रुकमणी तैं विस्वास छौ कि वेकु कृष्ण औलू अर ब्यौ मंडप बटे बि उठै
ल्ही जालौ। हैका तरफां धनसिंगल डिग्री पूरी कना बाद बीएड करि अर सु मास्टर बणिगे। अब
पंवार मवसी मु एक से एक बड़या रिस्ता औण लग्याँ कि नोनू मास्टर छन। पर तैन जमै ना करि कि मिन ब्यौ कनै नि। कुटुमदरी
पूछदी कि यार तेरी पंसद छन कखि क्वी नोनी त बतौ, पर सु बि चुप्प निचन्त ह्वै समै कु
जग्वाळ कन लग्यूँ।
3.
आज
ऐगे छौ समै। तबार हल्ला-रौळी अर टौरचौं उज्याळौ झळकीड़ा जन बाटे-बाट तौंका नजीक औण लग्याँ।
लोग-बाग़ पुष्कर सिंगा धारा पुंगड़ा कूणा-काणी धनुली तैं चाण लग्यां कि कखि क्वै दुख
बिमार, बसग्यालौ बगत कीड़ा पिटिंगै डौर अलैद। लोग किलौट करि धै लगाणा छा। लोगों किलौट
सूणी द्वियां मथि धार मा चुप्प सांस रौकि एक हैका पर चिपक्यां छया।
धनुली ब्वे डाड मारी छै धै लगाणी। ऐ मेरी धन्ना
किलै ऐ बाबा तू यीं कुबगत यीं पुंगड़ा। ऐ मेरी दौथर्या बांद कख छिन बाबा तू। ऐ मेरी
लाटी औ बा घौर, त्वैतें अब कुछ नि बोलुला।
तबार
केन बोली ऐ संजू तेरी गाड़ी मा क्व-क्वौं अयाँ रे आज ?
संजुन
सब्बी पसिंजरौं नौ गिणायी, अरे चच्चा सु धन्नी दा बि त छौ ।
हैकू
आदिम - औऽ! त आज उड़ियाँ पंछी अपणा घौळ अर हम छाँ यख झपक्वळी लगाणा, चला रे चला। अर
सारौ गौं आपस मा गुणमुणाट कन लग्यूँ।
तिसरौ
आदिम- चलो रे चलो। ऐ राजी बौ, पूसू दिदा चिंता
ना कौरा नोना-नोनी ज्वान-जमान छिन कन द्या वूं तैं अपणी, भौत साल ह्वैगी वूँ तैं चुपचाप
रयाँ। कुछैक दिन मा तौं तैं ढूंढी वापिस बुलै धैन-चैनौ ब्यौ कैर द्यूला। अर पंवार जी
आप अब पूसू भै दगड़ अपणी नराजी छवाड़ा, अब तुम द्वियां छांट आबत बणण वळा छन। राजी, पुष्कर
अर थानसिंग पंवार सब चुप्प। कुछैक देर मा हल्ला-रौळी गौं तरफां चलग्यौं।
ऐ
भ्यास चल
कख
रे भ्यास
खित्त-खित्त,
खित्तऽऽ
अज्यूँ
बि मथि अगास मा पूरणमासी जून बादळौं बीच लुक्का-छुप्पी छै कनि अर तै बदळद्यौ उज्याळा
मा बारा साल बटी द्वी मौन मायादार एक हैका तैं आरसी अर मुखड़ी जन हैरणा छया।
तबारी घंटा अद्दा घंटै चुप्पी धनुलिन तौड़ी। धन्नी
यार तू सच्ची मा कति ज्ञानी विद्वान बणिंगे, मेरी यति लम्बी तपस्या देणी ह्वेगी आज
पर ये शब्दौ अर्थ त बतै दे, जु हम बाळापन बटे एक हैका तैं बोलदा। सु भ्यास क्या ह्वौई
?
धन्नी
- भ्यासौ, भ्यास वळु सवाल। आज तक मजाक मा त्वैतें भ्यास बोल्दू छौ पर आज सच्ची मा बींगी
कि तू सचिगै भ्यास छन।
द्वियाँ
खित्त-खित्त, खित्तऽऽ
अरे
भ्यास उणि क्या पता भ्यासौ अर्थ, धनुली चड़म उठी अर धनसिंगौ हाथ खैंची तखबटे हिटणैं
सानी कन लगी। धनसिंग बि चम्म खड़ू उठि, त चल त। अर वीं का कांधिम हाथ धौरी गीत गाणूं
लगी।
जगमग जुन्याळी छाळी रात्यूँ मा,
गैंणों भौरी रात का जक-बक मा,
झळमळ जुगनू का उज्याळा मा,
घनघौरी औंसी, की रातियूँ मा,
त्यारा खुट्टा छाप तैं छौपणू रौलू।
कांठौं
को हियूँ यनु गळणू रैलो,
पाणी
बणि गदन्यूँ मा बगणू रैलो।
तिसळी मेरी माया सौंजड़या,
प्रीत कि तीस मा भटकणू रैलो।
भ्यास – र्निबुद्ध, निर्जन्ड सिद्दो/ सिद्दी, अजाण।
कानी: बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’
जुलाई 2024
वाह क्या चित्रण च प्रकृति कु , भाषा म ठेट पन भी अर एक गीत जु दगड दगड चलणु च
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भुला सते
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