अरुणोदय हुआ चला,
प्राची उदयमान हुई।
माँ भारती के स्वागत को,
राष्ट्र उमंगें वेगवान हुई।।
श्रावणी मंगल बेला पर,
तिरंगा शान से फहरायें।
स्वतंत्रता के महापर्व पर
प्रीत से जनगण मन गाएं ।।
महापुरूषों के स्वेद से,
मकरन्द यह निकला है।
योद्धाओं के सोणित से,
हमें लोकतंत्र मिला है।।
चित से उन महामानवों के,
बलिदान का गुणगान करें।
लोकतंत्र के महाग्रंथ का,
अन्तःकरण से सम्मान करें।।
पल्लवन इस वट बृक्ष का,
बुद्धि शक्ति तरकीब से हुआ।
तब इस सघन छाया में बैठना,
हम सबको नशीब हुआ।
ज्ञान, भुजबल परिश्रम से,
शेष दोष-दीनता दूर करें।
रिक्त है अभी भी जो कोष
चलो मिलकर भरपूर करें।
काम स्व हित संधान तक
यह लोकतंत्र का मान नहीं।
राष्ट्रहित निज कर्तव्यों को
आराम नहीं विश्राम नहीं।
जग में माँ भारती की,
ऐसी ही ऊँची शान रहे।
अधरों पर तेरे भरत सुत,
जय भारत का गान रहे।
@ बलबीर राणा 'अडिग'
मटई चमोली।
उत्तराखंड
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंवंदेमातरम्।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएँ
जय हिन्द सर
हटाएंबेहद सुंदर पंक्तियां
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महोदया 🙏🙏
हटाएंधन्यवाद महोदया 🙏🙏
हटाएंदेशभक्ति से ओतप्रोत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार महोदया 🙏🙏
हटाएंधन्यवाद शाह जी 🙏🙏
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