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शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

मेरी मुहबत


तेरे ख्वाबों खयालों में खोता रहता।
गम के हर आँसू पीता रहता।
तनहाईयों में भ्रमण करता रहता।
कब मिटेयी दूरियां ये सोचता रहता।
हर रस्ते में तुझे खोजता रहता।
जीवन का हर वो बेशकीमती पल]
तेरे लिए संजोता रहता।
जमाने की हर खुशी]
तेरे लिए समेटता रहता।
खुशी के उस पल के इन्तजार में]
दिन गुजरते हैं मेरे।
मेरी मुहबत पर एतबार रखना]
इसलिए तनहाईयों से लडता रहता।
रचना -: बलबीर राणा "भैजी"
31 अगस्त 2012

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

अहसाश जो जीने के मायने बदला गया



मैं शांत और चुप खडा था
पास थी तो सिर्फ तनहाई और
प्रतिघाती नीरसता।
तभी हवा का एक झोंका आया
एक अहसाश दे गया। 
दिल के दरवाजे पर दस्तक देके
श्रुतिपटल पर एक शब्द कह गया।
जीवन से प्रेम ..............
जीवन से प्रेम ??
हां जीवन से प्रेमA
अब उन शब्द्लाहरियों की गुन गुन                
सात सुरों का समवेत बांधती गयी
मन में हलचल, चित चंचल करती गयी
दिल में सुमन की कोंपलें फूटने लगी। 
आशा का दीप जला
निरसता और तनहाई कोषों दूर।
सामने जीवन की मादकती नूपुरता
स्वागत के लिए खडी
हवा का झोंका जिस वेग से आया था
उसी वेग चले गया 
बस !! अब था तो केवल एक अहसाश
वह अहसाश-------------
जो अब जीने के मायने बदला गया था A

रविवार, 26 अगस्त 2012

बाल मन जाग उठा

 
आज फिर बाल मन जाग उठा
अपने में ही हर्षित प्रशन्नचित
यादें चिर काल की
स्मृतियाँ चलचित्र बन
एक के बाद एक
उभरती,  आती-जाती
मन पर लगी धूल हटती जाती
और वो यादें
दिवास्वप्न बन के रह जाती
मन.. उद्वेलित
आज फिर बाल मन जाग उठा था
उसी जीवन में जाने को आतुर
……………………बलबीर राणा "भैजी
२६ अगस्त २०१२ 
 

ढाई आखर प्रेम कु

ढाई आखर प्रेम  कु बोली जावा
दुखः सुख बिसरी जावा
ये आंखर तें ग्येल्या बणे द्यावा

भलु बोलण मा भी गीचू ला खतेण चा
बुरू बूण मा भी गीचू खतेण चा
किले नी ? भलू बोली जावा

गीचू खटू कैरी खटाश ना बिछावा
अफूतें दूर ना करावा 
एक बार मिठू बोली जावा

क्वे नी बैरी क्वे नी पराया
अपणु ही गीचा अपणू बैरी
ये बैरी तें हटे जावा

क्ले रैन्दा कटय्यां कटय्यां
किले चा रूसंय्या
द्वी दिन का दिनोण यख
प्रीत कु आंखर बांटी जावा

मनखी जन्म चा अनमोल
दुबारा नी मिलदू कैतें
प्रीत का पाणी मां डूबी जावा

ये ढाई आंखर मा ताकत चा भौत
सब अपणा लगला हमूतें
एक बार अजमे के देखी ल्यावा

अंखार हैरी जान्दू यू ढाई आंखर
अपणा पराया कु भेद मिटे देन्दू
जतन कैरी जावा

ये आंखर मा वो सिद्धी चा
जू नी कै मन्दिर थाती बाती मां  नीचा
एक बार पूजी जावा
  बलबीर राणा "भैजी"
25 अगस्त   2012 

शनिवार, 25 अगस्त 2012

ऊसर जीजिविषा और वो



सुनशान स्याह रात]
बैठा वह प्रहरी ।
अन्धयारे  में आँख विछाये]
उस अन्धकार को ढूंढता
जो माँ के अस्तित्व को
ध्वस्त करने को आतुर।
यकायक सचेत हाsती निगाहें
पलकें बिचरण करती]
खोजती हर उस शाये और आहट को
जो कहर ना बन जाये मातृभूमी पर।
उसके दर्द की कोई सीमा नहीं]
सीमा हैS जमीन की
मानव अंहम की
खोखले जमीर की
दो मुल्कों के रंजिस की
उस जमीं पर परिन्दा भी घरोंदा बनाने में डरता]
उसी जमीं पर बसेरा उसका।
जीवन की हज़ार शिकायतें  के बाबजूद भी
सब्र और हिम्मत का पैमाना उसका]
अन्धेरे में और भी प्रगाड हो जाता
जब आवाज देती सुनशान हवायें।
उसकी इस अडिग तन्द्रा का मोल  
ऊसर होती उसकी जीजिविषाA
           बलबीर राणा "भैजी"
२५ अगस्त   २०१२