Pages

शनिवार, 25 अगस्त 2012

ऊसर जीजिविषा और वो



सुनशान स्याह रात]
बैठा वह प्रहरी ।
अन्धयारे  में आँख विछाये]
उस अन्धकार को ढूंढता
जो माँ के अस्तित्व को
ध्वस्त करने को आतुर।
यकायक सचेत हाsती निगाहें
पलकें बिचरण करती]
खोजती हर उस शाये और आहट को
जो कहर ना बन जाये मातृभूमी पर।
उसके दर्द की कोई सीमा नहीं]
सीमा हैS जमीन की
मानव अंहम की
खोखले जमीर की
दो मुल्कों के रंजिस की
उस जमीं पर परिन्दा भी घरोंदा बनाने में डरता]
उसी जमीं पर बसेरा उसका।
जीवन की हज़ार शिकायतें  के बाबजूद भी
सब्र और हिम्मत का पैमाना उसका]
अन्धेरे में और भी प्रगाड हो जाता
जब आवाज देती सुनशान हवायें।
उसकी इस अडिग तन्द्रा का मोल  
ऊसर होती उसकी जीजिविषाA
           बलबीर राणा "भैजी"
२५ अगस्त   २०१२  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें