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सोमवार, 17 दिसंबर 2012

अपणा मुलुक की याद



निरभगी खुद फिर भी लगी जान्दी,
अपणा मुलुक की याद एै जान्दी
बालपन का गुय्यां मुत्यां दिनो ला,
ये धरती की गोन्द्यारी रंग्यायी।
मुच्छायालु जगी पिच्छवाडी आन्दू
यु बाब दादुं पैली ही बोल्याली,
ओंली (अंगुर) कु स्वाद
आज चितायी।
जन्म भूमी की पीडा ना, आज बिथायी 
घाम बूडी धार पोर चल ग्यायी।
पर  हे!!!  निष्ठुर मनखी?
घाम ला भोल भी आण,
त्वेल, बिना घाम का
द्वि दिन की  चक्का चोन्द का छैल मा
अपणी पच्छयाण मिटै जाण।

बलबीर राणा "भैजी" 
17 Dec 2012

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