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गुरुवार, 23 मई 2013

जनतन्त्र या मनतन्त्र




जिसकी सुनो उसका दर्द छोटा है,
सबको पडा यहाँ समय का टोटा है

भागम भाग में जिन्दगी
अब एक रेस है,
जीवन के हर काम मे
निकलता कोई ना कोई मीन मेख है

सडक से संसद तक हंगामा ही हंगामा है,
घर क्या राजतन्त्र के गलियारों तक
अपने की हितों का तराना है

नीतियां, धरनो और
जूलोसों के नीचे पिस रही,
रोजगार और कल्याण
स्वार्थ के पीछे घिस रही

आज कितना निरंकुश राज है,
जनतन्त्र या मनतन्त्र बिराज है,
जो कुर्सी पर बैठा
उसी का ठाट बाट है।

10 फरवरी 2013
बलबीर राणाभैजी”
 © सर्वाध सुरक्षित

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