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सोमवार, 12 मई 2014

मनत

अर्चना तुझ से भगवन,
मनत में पुरुषार्थ मांगता हूँ।

ठुकराता हूँ खैरात समझी रोटी,
कोडी को भी पसीने से भिगाना चाहता हूँ।

ना मिले सोहरत ना मिले दौलत,
कृष्ण मित्र सुदामा बनना चाहता हूँ।

जब तक मानव मर्यादा इस ह्रदय रहे ,
तब तक ही शांशें जीवन की चाहता हूँ ।

© सर्वाधिकार सुरक्षित
बलबीर राणा "अडिग"

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