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गुरुवार, 5 जून 2014

माँ बसुन्धरा



माँ बसुन्धरा को नमन करें
दो फूल श्रधा के अर्पण करें
न होने दें क्षरण माँ का
सब मिल कर यह प्रण करें।

कितना सुन्दर धरती माँ का आँचल
पल रहा इसमें जग सारा,
अपने मद के लिए क्यों तू मानव
फिरता मारा-मारा
संवार नहीं सकते इस आँचल को तो
विध्वंस भी तो ना करें,
माँ बसुन्धरा को नमन करें।

हिमगिरी शृंखलाओं से निरंतर
बहती निर्मल जल धारा,
सींच रहा इससे जड़ जीवन
उगता नित नयें अंकुरों का संसार प्यारा,
यूँ ही सोम्यता बनी रहे
सब मिल कर जतन करें,
माँ बसुन्धरा को नमन करें।

जल-जंगल पादप लताएँ
जगाये हैं जीवन ज्योति हमारी,
आज काट-काट कर खंडित हो रहे
एक दिन पड़ेगी जीवन पर भारी,
प्रदुषण के बारूदों से
प्रकृति प्रवृति को परवर्तित ना करें,
माँ बसुन्धरा को नमन करें।

©
सर्वाधिकार सुरक्षित
बलबीर राणा "अडिग"

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (06.06.2014) को "रिश्तों में शर्तें क्यों " (चर्चा अंक-1635)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  3. बहुत सुन्दर पर्यावरणीय सन्देश के साथ सुन्दर प्रस्तुति

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  4. उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद राजेंद्र कुमार जी, प्रतिभा वर्मा जी और कविता रावत जी

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  5. सुंदर प्रस्तुति का आभार।

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  6. वाह्ह पर्यावरणीय सन्देश के साथ प्रस्तुति

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