धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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बुधवार, 9 जुलाई 2014
अहसास
पहली जिज्ञासा आज भी पहली कुछ बदला नहीं अहसास ऊँचे उठे मन का रंग गहरा मंत्रणा गंभीर चित चंचलता दीर्घ चपलता वही बदला तो केवल बंधन.... जिसके कदम रस्म से चल कर आज ! अटूट कर्म यज्ञ तक पहुंचे।
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