धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
पहली जिज्ञासा आज भी पहली कुछ बदला नहीं अहसास ऊँचे उठे मन का रंग गहरा मंत्रणा गंभीर चित चंचलता दीर्घ चपलता वही बदला तो केवल बंधन.... जिसके कदम रस्म से चल कर आज ! अटूट कर्म यज्ञ तक पहुंचे।
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