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रविवार, 17 अगस्त 2014

सपनो की आजादी बाकी है



उत्सव आजादी के हम  खूब  मना चुके
निजी आजादी का जश्न मनाना बाक़ी है
संघर्षी भारत आजादी के सपने प़ूरे हुए थे
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।

जाति धर्म के बक्र-रेखाओं में
तभ भी रेंग रहा था जीवन
ऊँच नीच की खायी में
आज भी उछल रहा जीवन

आजादी तो ओपनिवेशवाद से मिली
उदारवाद की लड़ाई जारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 
जीवन के सुनहरे सपनो की
मार्केटिंग ब्रांडिंग का दौर चल रहा
राजनीति के बाजारों में
सपनो का मोल-भाव लग रहा

दिखाए सपनो में सोये-सोये ताली बजाना जारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 
आजादी को दूर से देख जब महापुरुषों ने
इन्द्र धनुषी मोहक थी सुकून वाली लगती 

आज निकट पहुँचा वर्तमान इसके 
हाय हाय की बिरानी चहुँ और झलकती 

खींच-खांच जुगाड़ों से

गाडी गृहस्ती की खींचना कितना भारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।

इमानदारी की परिभाषा भी
आजाद लोगों ने खूब गडी है
यह तो उसका काम है
मुझको क्या पड़ी है

कटाक्ष और निंदा की, सभाएं हर नुकडो में जारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 

समता और अधिकार
राजतंत्री आजादी का अर्थ हो सकता
अन्तरतम से जब तक आजाद ना हो
स्वतंत्र कहलाना व्यर्थ हो सकता।

खुद की पहनी बेड़ियों से तन मन आज भी भारी है
भारतीय आत्मा के सपनों की आजादी बाकी है।
 
रचना:- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित

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