जों झुकड़ों प्रेम ज्योत जगी वो रांकाक सारा नि रैन्दा
क्या नाम दिया बेलनटाईन डे अंग्रेज चले गए पूछ थामे हम घिसट रहे हैं । भल मानुसो दिल से सोचो प्रेम प्यार मोहबत माया के लिए कोई घडी समय या दिन चाहिए अगर चाहिए तो वो मानव शरीर ही नहीं हो सकता दानव है या पशु!! ऐसे प्रेमालाप वाले दिन तो पशुओं या दानवों का आता है । सच कहूँ तो यह दिन " पर " (अनाचार का दोष) वालों का है। हमारी गढ़वाली में "पर" शब्द को इज्जत पर तीक्ष्ण बाण का घाव माना जाता है अर्थात "पर" उस पर लगता तो द्वी घर्या (दो घरों वाली या वाला) हो जाता है पुरुष हो या महिला। उसकी औलाद से रिश्ता भी परहेज माना जाता था तो ये दिन पशुवत मनोवृति वाले द्वी घर्या वालों का है जिनके जीवन में प्रेम मात्र एक दिनी होता है । मेरे कटु सत्य को अपने को आधुनिक कहने वाले सहन नहीं कर पाएंगे पर अन्तरात्मा से पूछना जिस दिल में प्रेम की ज्योत जलती है वहां हमेशा अपनत्व का प्रकाश रहता है उसे विशेष दिन की जरुरत नहीं होती । इस दिन का इतिहास जो भी रहा हो लेकिन इसकी भोंडे चलन से यह "पर" वालों का ही दिन लगता है जो सनातन संस्कृति में अनुचित के साथ औचत्यहीन है।
@ बलबीर राणा अडिग
धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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