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रविवार, 26 अप्रैल 2015

वर्तमान शिक्षा व्यवस्था मनुष्य निर्माण नहीं मशीनों का निर्माण


वर्तमान शिक्षा व्यवस्था मैकाले की शिक्षा व्यवस्था, जिसमें मनुष्य निर्माण नहीं मशीनों का निर्माण हो रहा है इसी शिक्षा व्यवस्था कि देन है कु व्यवस्थाएं और भ्रष्ट समाज, समाज कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि वह कर्मचारी, अधिकारी और नेता समाज का हिस्सा ही तो है जो केवल उपरी आय पर गिद्द निगाह जमाये बैठा है, और भौतिक सुख को ही जीवन का उद्देश्य मान चुका है I आज भरकम और व्यवसायीकरण भारतीय शिक्षा व्यवस्था के तले आम आदमी/ गार्जियन रौंदा जा रहा हैI हाल ये है कि जो माता पिता जान-समझ भी रहे हैं कि गलत हो रहा है लेकिन मूक होकर नियति मान पिसते जा रहे हैं क्योंकि बच्चे का भविष्य का सवाल है मशीन ही सही कल दो रोटी तो खा लेगा और बच्चे को मशीन बनाने कि कवायद पर जोरों से लगे हैंI क्वालिटी नहीं क्वांटीटी का विकास हो रहा है, ऊपर से सरकारी मानक प्रसेंटेज वाला थ्री इडियट का चतुर्लिंगम I

काश अगर लोकतंत्र में बोट के अलावा कोई और बिकल्प होता तो अच्छा थाI बोट बैंक और कुर्सी ने आम आदमी को सबकुछ फ्री देकर नपुंसक बना दिया भगवान् कृष्ण के कर्मफल का सिद्धांत फ़ैल हो गया समझो I अमुख पार्टी को बोट दो कुर्सी पर बिठाओ और बैठे बिठाए फ्री में पाओ I सचमुच में होना तो ये चाहिए था कि जनता का विकास करना है तो उनके बौधिक विकास के लिए उनके हाथ में काम  देना था फ्री का पैंसा नहीं I एक और महत्वपूर्ण तथ्य जो आज भारत की कर्मशीलता को क्षीण करता जा रहा है वो है आरक्षण! पता नहीं किस विद्वान ने इस आरक्षण वाली थ्योरी को चालु किया अगर वास्तविक में निन्म्बर्ग का उथान करना है तो उनको सार्वभौमिकता से काबिल बनाया जाय ताकि खुद की क़ाबलियत से वो आदमी वो सब कुछ अर्जन कर सके जिसका वो हकदार है  यह आरक्षण निति समाज के धुर्विकारण करने का फंडा है I सुना है अब पद्दोनती में भी आरक्षण होने लग गया है या  मांग हो रही है, बेक़ाबलियत और अनुभवहीन व्यक्ति तंत्र का संचालक बन बैठेगा तो भारत निर्माण ऐसे ही तो होगा जो पिछले ६७ वर्षों से होता आया है I इमानदार काबिल अधिकारी और कर्मचारी हजारों पोस्टिंग और मानसिक यातनाओं से झुजता रहता हैI

आज भारत के निति निर्धारकों को जापान जैसे देश से शिक्षा लेने कि जरुरत है जहाँ आदमी मशीनों का निर्माण करता है मशीन आदमी का नहीं और मैकाले की क्वांटीटी शिक्षा व्यवस्था को छोड़ स्वामी विवेक नन्द के कर्मयोग शिक्षा को अपनाना होगा तभी गाँधी जी के सपनो का भारत बनेगा, क्या कोई कुर्सी पर बैठा बुधिजीवी मुझे बता पायेगा कि उस शिल्पकार, कलाकार और कर्मकार जो निजी लघु उद्योग से खुद के साथ दूसरे की भी आजीविका बना है उसे क्यों नहीं किसी मैनेजमेंट या अन्य डिग्रियों से नवाजा जाता है? क्यों नहीं सरकार उसे अतरिक्त तनखा देती है? उस सफल किसान को क्यों नहीं डिग्री दी जाती जो अपनी मेहनत और तकनिकी से पैदावार कर देश की उदर ज्वाला शांत करता है ? इस शिक्षा व्यवस्था ने आज किसानी जैसे परमार्थी कर्म को भी संशय में डाल दिया और हताश किसान राजनीती पार्टियों द्वारा पिपली लायिब का नथा बनने पर मजबूर हो रहा है I असली भारत निर्माण के लिए निति नियंताओं को ऐसे हजारों क्यों पर मंथन, मनन और क्रियानवयन करना होगा  तभी जाकर एक स्वाबलंबी भारत और भारतीय का पुन: निर्माण हो सकेगा I

 
लेखक: बलबीर राणा ‘अडिग’
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1 टिप्पणी:

  1. धरातलीय बातों का संज्ञान दिलाता सारगर्भित आलेख ,, बहुत सुन्दर राणा जी

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