धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
Pages
▼
मंगलवार, 7 अप्रैल 2015
चींथडों में अपनापन
गरबी तू ही अच्छी थी
चींथडों में मेरे अपने
मेरे आगोस में हुआ करते थे
महलों की मखमली चादर
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा
जो तु मेरे अपनों को
मुझसे छीन ले गयी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें