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मंगलवार, 2 जून 2015

माँ कहाँ है बचपन


अरे माँ तु ही तो कहती थी
अले मेरे लsला
ज्यादा उथल पुथल न कल
बहार आने के बाद
खूब नाचना
सलालत करना
हुदंगल मचाना
किलकारियां मारना
कान्हा जैसा होगा तू जरूर
लेकिन!!!
जब आई बारी किल्किलाने की
तो... तो !
किताबों का बोझ
कंप्यूटर इंटरनेट
दुनियां का इन्साइक्लोपिडिया
और ना जाने कितने
बोझ तले
मेरी किलकारियों को दब गयी
धरती में आते ही
डाक्टर, इंजिनियर
और भी
पैंसों की मशीन बनाने की जुगत
होड़ अहम् की
दम्भ की
वाह रे दुनियां
दुनियां वालो
तुम्हारे लालच ने
बचपन आने नहीं दिया
बता माँ
कहाँ है बचपन?

रचना:- बलबीर राणा "अडिग"
© सर्वाधिकार सुरक्षित

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