Pages

सोमवार, 27 जुलाई 2015

एक और उद्वेग

तुझे अपना समझ जी रहा था
नहीं पता था तु पराया समझ निभा रहा है
इबादत लिखने चली जब कलम  दिल में तेरे
देख हैरान हूँ परायापन की स्याही पहले से पुती हुयी है।

@ बलबीर राणा "अडिग"
©सर्वाधिकार सुरक्षित

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें