धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
तुझे अपना समझ जी रहा था नहीं पता था तु पराया समझ निभा रहा है इबादत लिखने चली जब कलम दिल में तेरे देख हैरान हूँ परायापन की स्याही पहले से पुती हुयी है।
@ बलबीर राणा "अडिग" ©सर्वाधिकार सुरक्षित
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