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रविवार, 2 अगस्त 2015

मित्र दिवस


क्योंकि आप मेरे लिए अनमोल हो
साथ हर पल रहे शाम हो या भोर हो
:-      वैसे दोस्ती या रिश्तों के लिए कोई विशेष दिवस की जरुरत नहीं थी सच्ची दोस्ती और रिश्ते अपने आप में ही हर पल महा प्रेमपास में जकड़े हुए रहते है लेकिन यह मानव बृत्ति है यहाँ विद्युत की दोनों धाराएं बहती हैं मन रखने के लिए इतिश्री भी खूब चलती है !! मेरे आंकलन से जीवन का व्यव्हार इनपुट आउट पुट का सिद्धांत है हमारी गढ़वाली में कहते हैं बल: मैं_कण_चिताणु_जन_तु_चितोल् अर्थात दोस्ती और रिश्तों की फीलिंग एक दूसरे की समतुल्य होती है मान-सामान, आदर-निरादर एक दूसरे समान्तर बहने वाली धारा है । परन्तु ई लाईफ़ का वर्तमान जीवन परिवेश जो खुद में सिमटा हुआ लगता है अगर इन दिवसों की जरुरत महसूस कर रहा है तो स्वीकार करना पड़ेगा चलो इस बहाने तो याद किया, कुछ नहीं से थोडा भला।
स्व विचार।
@ बलबीर राणा 'अडिग'

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