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रविवार, 17 जनवरी 2016

सैनिक की ख्वायिस


बैरी चाहे कितना भी बलशाली हो
तोपें चाहे उसकी कितनी भी हावी हो
बिजली की कड़क हो या बौछार हो
रेगिस्तान की आग बरसाती दुपहरी के अंगार हो
भारत पुत्र हूँ हर हाल से निपट के आऊंगा
तिरँगा लहरा के आऊंगा या तिरंगे में लिपट के आऊँगा।

कितनी भी शीत भरी बर्फीली आंधी चले
बादल गरजे या सैलाब बहे
ये अडिग हिमालय पुत्र हिलेगा नहीं
हेड सूट करेगा, लक्ष्य से चुकेगा नहीं
कसम जो को खायी थी गीता पर हाथ रख कर
उस कसम को हर हाल में निभाता जाऊंगा
तिरंगा .............

माँ कसम तेरी
दुश्मन के पग तेरी धरती पर  नहीं रखने दूंगा
कोख सूनी हो सकती पर बदनाम न होने दूंगा
अपने भाई के लिए निशान मातृभक्ति का छोड़ जाऊंगा
जो आँख भारत विशाला पर उठेगी उसे फोड़ के आऊंगा
तिरंगा लहरा के आऊंगा या तिरंगा लिपट के आऊंगा।

पता है मुझे भेदिये विभीषणों की कमी नहीं
चिता की आग में रोटी सेकने वालों की कमी नहीं
लेकिन मन मेरा भरमेगा नहीं है
कदम लड़खड़ा सकते पर रुकेंगे नहीं
क्योंकि राजगुरु विस्मिल का  एक सुरी जय हिन्द मेरे कानो गूंजता है
नाम नमक निशान पर मिटना मेरा सैनिक धर्म मुझे सिखाता है।
आखरी सांस तक माटी के लिए सर्वस्व न्यौछावर करना नहीं छोड़ूंगा
तिरंगा लहरा के आऊँगा या तिरंगे पर लिपट के आऊँगा।
रचना @ बलबीर राणा 'अडिग'
© सर्वाधिकार सुरक्षित ।
प्रस्तुत रचना सच्चे सैनिक भावना पर मन के उदगार है काश भगवान् इस कर्तव्य पथ पर हमेशा चलने का अवसर दे

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