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रविवार, 31 जनवरी 2016

लिख गीत नव चेतना का


गुनगुना उठे मनुज मन
स्नेह विभोर रोमांचित तन रहे
लिख गीत नव चेतना का
मनुजता हर हृदयगम रहे
सब कंठ गाये गीत वतन का
हर हाथ तीन रंग का निशान रहे
एक ही हँसी का रस निकले
एक ही दर्द का लहू बहे
एक ही भारत वंदन बंद हो
ऐसा मानवीय वितान रहे
कर्म सत्य सृजन संचय करे
हरीशचंद्र की धरती का अभिमान रहे
एक बगिया के फूलों की
रंग बिलग एक सुगंध
एक ही नीर से सिंचित सब
सबको ये भान रहे
भारत भाग्य विधाता हो हर सुत
सबका स्वाभिमान जगे
लिख गीत नव चेतना का
मनुजता हर हृदयगम रहे

रचना : बलबीर राणा 'अडिग'
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