गुनगुना उठे मनुज मन
स्नेह विभोर रोमांचित
तन रहे
लिख गीत नव चेतना का
मनुजता हर हृदयगम रहे
सब कंठ गाये गीत वतन
का
हर हाथ तीन रंग का
निशान रहे
एक ही हँसी का रस निकले
एक ही दर्द का लहू बहे
एक ही भारत वंदन बंद
हो
ऐसा मानवीय वितान रहे
कर्म सत्य सृजन संचय करे
हरीशचंद्र की धरती का अभिमान रहे
एक बगिया के फूलों
की
रंग बिलग एक सुगंध
एक ही नीर से सिंचित सब
सबको ये भान रहे
भारत भाग्य विधाता हो
हर सुत
सबका स्वाभिमान जगे
लिख गीत नव चेतना का
मनुजता हर हृदयगम रहे
रचना : बलबीर राणा 'अडिग'
© सर्वाधिकार सुरक्षित
2 टिप्पणियां:
Sundar bhav. Badhai.
धन्यवाद भैजी
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