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मंगलवार, 2 जनवरी 2018

वर्ष नया बन आता है

खुसी के कुछ पल वो संजो गया
कुछ दुखी क्षणों को वो दे गया
किसी की भर दी किताब उसने किसी के अध्याय अधूरे छोड़ जाता है
वर्ष नया बन आता है
उठ खड़ा हो जाग जरा 
उबासी को भगा जरा
पष्चिम से जिन्हे जाती देखा पूरब से वही बिपुल किरणो का झुरमुट फिर लुभाता है
वर्ष नया बन आता है।
वादे नयें कसम पुरानी
थी रानी या होगी रानी
सजा ना सका सिंहासन पर फिर बाहु पास में बाँधने को देखो कैसे सकपकाता है
वर्ष नया बन आता है।
धरा वही गगन वही
ना वो कहीं ना तू कहीं
संख्याओं की जमी परत से ये जीवन परमार्थ नहीं कमा पाता है
वर्ष नया बन आता है।
एक ही सन्देश उसका
एक ही आदेश उसका
नेक नियति संग कर्म कर भय्या इसलिए हर वर्ष मौका बन कर आता है
वर्ष नया बन आता है।
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'

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