Pages

बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

आखरी कब तक

डंसती रहेगी ये सर्पीली सड़कें आखरी कब तक
उठती रहेगी यूं असमय चिताएं आखरी कब तक
कौन दोषी किसके सर फोड़ें ठीकरा इस जुल्म का
बिना जुल्म के जुल्म ढहता रहेगा आखरी कब तक।

यूं वेकसूर को हर ले जाएगी मृत्यु आखरी कब तक
हंसते खेलते परिवार पर तुषारपात आखरी कब तक
कौन आया वो मौत का सौदागर इन सुंदर वादियों में
बिना मोल का ले जाना जारी रहेगा आखरी कब तक।

सौदे कायदे कानून का जेबों में आखरी कब तक
पतवार नौसीखिये केवट हाथों आखरी कब तक
नहीं थाम सकेगा पतवार वो मतवाला झूमते हाथों से
डूबाते रहोगे नैया हम पहाडियों की आखरी कब तक।

@ बलबीर राणा 'अड़िग'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें