जगत पथ की पगडंडियों पर
जीवन चलता है बढ़ता है
असीम थाह की चाह में मनुज
अथाह अनायास भागता है
असीम थाह मिलती नहीं
जीवन में इसका ठौर नहीं
कर्म प्रधान है जीवन तो
कर्म सिवा किुछ और नहीं
जब तक पथ शेष है जीवन का
विश्राम नहीं आराम नहीं
अकर्म विकर्मो के राहों पर
ईश्वर नहीं राम नहीं ।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजब तक पथ शेष है जीवन का
विश्राम नहीं आराम नहीं
अकर्म विकर्मो के राहों पर
ईश्वर नहीं राम नहीं ।
अनंत राह ही जीवन है और कर्म ही अनंत राह। आराम के क्षण राम कहाँ मिल पाएंगे।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ ।
आपकी प्रेरणा प्रद टिप्णी हेतु हृदय से आभार आदरणीय पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी।
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