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रविवार, 8 मार्च 2020

नारी किरदार



हर नजर और नजरिये ने 
अपने खातिर किरदार पढ़े
अपनी परिभाषा गढ़ी
माँ, बहन, बहू, बेटी
हमसफर/ दोस्त/ साथी
सहचरी/ सहभागनी
अर्धांगनी/बामांगनी
प्रिया  त्रिया इत्यादि।

लेकिन मैंने देखा
इन किरदारों के मंचन में
विभन्न भाव, वेशभूषा
नाना कलाओं और
मुद्राओं से जो मूर्ति बनी है
वह धरती की है
जननी की है ।

जो अचल/अड़िग है
जिसमें धीर-थीर धैर्य है
जिससे जीवन उर्जित है
उसमें संजीदगी है गंभीरता है
वेदना समन की शक्ति है

उस परिपूर्ण सजल मूर्ति में
प्रेम है माया मोह है ममता है
किसलय इतनी कि
तनिक पर दुःख पर
विह्वलता, करुणा और
दया धर्म पसीजता है।

उसमें नूर है आकर्षण है
निश्च्छलता है निर्मलता है
सौम्यता है सम्मोहन है
वह वाकपटु विदुषी है।

दानवी समन के लिए
रणचण्डी ज्वाला है
तेज तलवार कटार धारी है
गोली का वेग उसमें
जेट विमान सी गति उसमें
जल थल नभ पूरे ब्रह्मांड को
विजित करने का सामर्थ्य है
अनन्य शस्त्रधारी शक्तिवान
प्रबल बल की स्वामिनी है

वह कोयल कोकिला है
वीणा वादिनी है
सुर संगीत साम्राज्ञी है
कलित कलाओं में
निपुण योगनी है
साहित्य संस्कृति सूक्ति है
छंदबंध भी है
वंधन मुक्त मुक्तक भी है
और सबसे बढ़कर
सुत का सम्पूर्ण जीवन ग्रंथ है

वह ज्ञान ज्योति है
तिमिर में प्रकाश पुंज है
जीवन के हर कर्म में
प्रखर प्रवीण है, दक्ष है ।

यह प्रतिमा है
त्याग की अर्पण की
अथाह सबल समर्पण की।

सर्व गुणों से सज्जित
सुंदर जो ये कुट्यारी है
वह मातृशक्ति नारी है
वह मातृशक्ति नारी है।

कुट्यारी - गठरी

@ बलबीर राणा 'अड़िग'
8 मार्च 2020

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बेहतरीन सोच।
    कई शब्दों का अनावश्यक प्रयोग है जो हटने से शायद कविता और सुंदर बन सकती है। बाकी रचनाकार बेहतर जानता है।
    कई जगह त्रुटियां है उनको सुधार ले।
    नई पोस्ट - कविता २

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  3. मुझे तो बस इतना पता है कि माँ नहीं होती तो मैं नही होता और पत्नी नहीं होती तो मेरे बच्चे / बेटियाँ नहीं होती। इसकी पटाक्षेप में नानी व दादी की भूमिका कैसे भूल सकता हूँ ।

    एक पुरुष तो महज कड़ी की भाँति है। हमारा पूर्ण अस्तित्व ही आपकी वजह से है।

    महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  4. बहुत खूब। सशक्त आलेख।
    --
    रंगों के महापर्व
    होली की बधाई हो।

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  5. धन्यवाद और आभार आदरणीय डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी, रोहितास घोरेला जी, पुरुषोतम कुमार सिन्हा जी। रोहितास घोरेला जी आपकी टिप्पणी का विशेष धन्यवाद टंकण मिस्टेक देख लेता हूँ गुगल इनपुट टूल से ऐसी गलतियां होती हैं बाकि शब्दों का अनावश्यक प्रयोग आपके समालोचन में हो सकता है, मैंने तो बस मातृशक्ति हेतु अपनी श्रद्धा और भावनाओं की हद को देखा है। फिर से कोटिस आभार

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