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शुक्रवार, 11 जून 2021

आठ मुक्तक

 


१.

मेरा चिन्तन गाँव के लिए

मेरा मंथन गाँव के लिए

चाहता हूँ उभरे और कोई भाई

उभरते ही गाँव से जाने के लिए।

 .

वे पलायन पर खूब बातें करते

ग्राम हालात पर चिन्तित दिखते

शहर के आलिशान आशियाने से  

स्टेटसों में बहुत  व्यथित दिखते ।

 ३.

चाहत ने मन को बेमान बनाया  

स्वाद ने रसना को गुलाम बनाया  

लार टपकने से रुकती अब कहाँ 

भौतिकता ने सबको स्वान बनाया।

 ४.

कहाँ है भगवान किसने देखा

क्या होता ईमान किसमें देखा

ऐसे चेतनाहीऩ प्रश्न वालों का   

मर्यादा निदान किसने देखा।

 ५.

धन से खुसी खोजने वालो

हँसी के लिए चमन रौंधने वालो

नहीं मिली सांसे तिजोरी उड़ेल भी

चमन को तिजोरी में भरने वालो । 

 ६.

जल्लादी सीरत पिघल सकती है

पत्थर से जलधारा निकल सकती है

इंशानियत पे आकर तो देख आदमी

भाग्य की रेखा बदल सकती है ।

 ७.

ईमान राजनीति में बिक गई

चाटुकारिता में कलम बिक गई 

अब मत पूछो बिकना क्या बाकी 

कुर्सी की चाह में आत्मा बिक गई।

८.

हम भूखे पेट गुनाहगार बन बैठे

वे खा खा कर बिमार बन बैठे 

चिखते चिल्लाते थे जो जनहित   

वे ही जन के गद्दार बन बैठै ।


@ बलबीर राणा 'अडिग' 

https://adigshabdonkapehara.blogspot.com/

11 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक विश्लेषण !आज के सत्य पर सीधे चोट करते सार्थक मुक्तक ।

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