देखा है मैंने
उदासी के बबंडर में
मनोरथों को उड़ते।
देखा है
उदासी के सैलाब में
इच्छाओं को बहते।
देखा है
उदासी की चट्टानों में
हौसले को दम तोड़ते।
होते देखा
उदासी के पिंजरे में
उम्मीदों का धराशायी होना।
देखता आया हूँ
उदासी की गिरफ्त में आये
मनु पुत्र की
गुमसुम छटपटाहट को
सुनसान कोलाहल के बीच
तिमिर स्याहपन में
गति रहित भटकन को।
उदासी के वसन में
ना कुछ सुनाई देता
ना दिखाई देता है
स्वादरहित रसना से
समय का भक्षण करता है
ना वाणी ना स्वर
बस मूक को पीता रहता है
रात दिन।
रसीले संसार में निरा अतृप्त ।
इस लिए
मैंने उसके आने के
सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए हैं
और आप भी किजये।
रसातल संसार में अकेले
मनु ने उदासी को फटकने तक
नहीं दिया था
तभी वे इस चराचर को रच पाये थे
हम सभी को
यहाँ कुछ न कुछ रचना है
उदासी उत्पत्ति नहीं
लोप ह्रास दात्री है।
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०६-२०२१) को 'नेह'(चर्चा अंक- ४१००) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार अनिता सैनी जी
हटाएंरसातल संसार में अकेले
जवाब देंहटाएंमनु ने उदासी को फटकने तक
नहीं दिया था
तभी वे इस चराचर को रच पाये थे
सकारात्मक दृष्टिकोण की सीख देता हृदयस्पर्शी सृजन ।
धन्यवाद आदरणीया मीना जी
हटाएंउदासी उत्पत्ति नहीं
जवाब देंहटाएंलोप ह्रास दात्री है।
बहुत ही सुंदर, सकारत्मक सोच को प्रवाहित करता सृजन,सादर नमन आपको
सकारात्मक संदेश ।
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