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रविवार, 19 जून 2022

पिताजी के जूते




आज नजर पड़ी 

बिना पांव के 

उन प्रिय जूतों पर 

जो पिताजी के प्रिय थे 

लोकलाज 

शान सम्मान के द्योतक थे, 

लेकिन आज

निरा तिरस्कृत

कौने में पड़े

धूल से सने, 

तलवे वैसे ही चकत्तेदार चौखट,

जैसे कि आज से 

ठीक पच्चपन साल पहले 

जब ये फैक्टरी से निकले होंगे,

पिताजी पहनते नहीं थे

ले जाते थे इन्हें

काख में दबाके

रस्ते भर,

ताकि गंतव्य में अगले गांव

आते ही कुछ समय पहनके

दिखा सके जूते पहनने की हैसियत, 

और

आजीवन नंगे पांवों में बिवाईयां 

गाड़ते रहे पहाड़ की पगडंडियों पर

मेरे लिए । 


@ बलबीर राणा 'अडिग''