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रविवार, 19 जून 2022

पिताजी के जूते




आज नजर पड़ी 

बिना पांव के 

उन प्रिय जूतों पर 

जो पिताजी के प्रिय थे 

लोकलाज 

शान सम्मान के द्योतक थे, 

लेकिन आज

निरा तिरस्कृत

कौने में पड़े

धूल से सने, 

तलवे वैसे ही चकत्तेदार चौखट,

जैसे कि आज से 

ठीक पच्चपन साल पहले 

जब ये फैक्टरी से निकले होंगे,

पिताजी पहनते नहीं थे

ले जाते थे इन्हें

काख में दबाके

रस्ते भर,

ताकि गंतव्य में अगले गांव

आते ही कुछ समय पहनके

दिखा सके जूते पहनने की हैसियत, 

और

आजीवन नंगे पांवों में बिवाईयां 

गाड़ते रहे पहाड़ की पगडंडियों पर

मेरे लिए । 


@ बलबीर राणा 'अडिग''

19 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-6-22) को "पिताजी के जूते"'(चर्चा अंक 4467) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  3. ताकि गंतव्य में अगले गांव
    आते ही कुछ समय पहनके
    दिखा सके जूते पहनने की हैसियत,
    और
    आजीवन नंगे पांवों में बिवाईयां
    गाड़ते रहे पहाड़ की पगडंडियों पर
    मेरे लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  4. पिता को समर्पित बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  5. हृदय स्पर्शी सृजन पढ़कर अशोक वाजपेयी जी की रचना जूते का स्मरण हो आया।
    सादर

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  6. बहुत सुंदर भावप्रधान रचना

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  7. अविस्मरणीय।अपनों की याद दिलाती हुई।

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  8. हृदयस्पर्शी रचना मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  9. वाह! मुझे आज अपने पिता की बहुत याद आ रही थी। जब पिता नहीं हो सकते, तो पिता की तस्वीरें, और पिता पर लिखी कविताएँ दर्द पर फ़अहे का काम करती हैं।

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