Pages

रविवार, 3 जुलाई 2022

गजल


 


मोहकता तो एक  बहाना है,

अंगजा  को धरती सजाना है।

 

जितने  भी  रंग  ऋतुऐं  बदले,

उन्हीं में उसका आना जाना है।

 

आभा जो कुसुम बन निखरी,

उसको  नहीं  कुम्हलाना  है। 

 

और  प्रारब्ध पुष्प का बाकी,

फल बनके  बीज  बनाना है।

 

प्रेम से गाड़े जाने वाले बीज को,

धरा चीर अंकुर  बन  आना  है ।

 

ये  तो प्रकृति  रीति  है  अडिग

अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है।

 

@ बलबीर राणा ‘अडिग’


12 टिप्‍पणियां:

  1. ये तो प्रकृति रीति है अडिग

    अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है

    बहुत खूब ...... यही शाश्वत सत्य है ...

    जवाब देंहटाएं
  2. ये तो प्रकृति रीति है अडिग
    अंकुर का वृक्ष बन बूढ़ा जाना है।

    जवाब देंहटाएं
  3. जितने भी रंग ऋतुऐं बदले,

    उन्हीं में उसका आना जाना है।
    वाह!!

    जवाब देंहटाएं
  4. ये प्रकृति रीत है...
    वाह!!!
    बहुत ही सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

    जवाब देंहटाएं