मद मोह में अंधे बन, न करो भागम भाग।
रहे इतना भान मनुज, लगे ना अमिट दाग।।
सत मार्ग कारिज होवे, बन जाए कर्मप्रधान।
तेरे बाद रहे अमर, तेरे करम सुजान।।
कल के लिए आज तेरा, हो संचय तू जान।
सत पूंजी संकट मिटे, सत सुमार्ग पहचान।
देव धर्म धरा सब दीर्घ, कुपथ गमन नष्टवान।
शूल वाणी बमन तजो, सुवचन सम बलवान।
छुवीं नन्हीं शीतल बने, छुवीं ही बड़ी आग।
छुवीं लगे ऐसी अडिग, नष्ट हों तेरे दाग।
छुवीं = बातचीत
©® बलबीर राणा ‘अडिग’
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मान्यवर भाव अच्छे हैं परंतु अभी शिल्पगत निखार अपेक्षित है,धन्यवाद!!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी मार्गदर्शन के लिए, जरूर त्रुटियां दूर करूंगा
हटाएंसुन्दर दोहे...👍👍👍
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव सृजन, दोहे का शिल्प अभी परिश्रम मांग रहा है।
जवाब देंहटाएंमार्गदर्शन हेतु आभार वीणा जी
हटाएंबहुत सुंदर दोहे।
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद सैनी जी
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