निगाहों की जद में आओ तो कहूँ,
गुनाहों की हद में आओ तो कहूँ।
कितनी मायाळी छुँयाळ* है ये आँखें,
आँखों से आँख लड़ाओ तो कहूँ।
किसने कहा पत्थर जितम* है वह,
फूल से रिसना न पाओ , तो कहूँ।
निरमोही जैसा क्यों लड़ भिड़ जाते हो,
बिना मोह के मौ* पाओ तो कहूँ।
कौन है अंदर जिसने जकड़ा है जिया,
छुड़वा दूंगा पिया बनाओ, तो कहूँ।
नहीं खोले मैंने ड्वार किसी ओर को,
तुम सांकल खड़खड़ाओ, तो कहूँ।
कितना जिगरा है मैं भी तो देखूँ अडिग,
जरठों पर भी जिया लगाओ, तो कहूँ।
*शब्दार्थ :-
मयाळी - मोहनी
छुँयाळ - बातुनी
जितम - छाती
मौ - परिवार
ड्वार - दरवाजे
जरठ - बृद्ध
@ बलबीर सिंह राणा अडिग
ग्वाड़ मटई, चमोली उत्तराखंड
आनंदम
जवाब देंहटाएंवाह वाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब...
धन्यवाद देवराणी महोदया
हटाएंवाह! रोचक और भावपूर्ण अभिव्यक्ति बलबीर जी।हर शेर अपनी कहानी खुद कहता है।हार्दिक बधाई और आभार 🙏
जवाब देंहटाएंवाह शानदार
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