बादलों सा बरखा की कहानी में रहें,
गम के जैसा आँखों के पानी में रहें ।
फेंको मत ऐसे टूटे आईने के टुकड़ों को,
ताकि अपने बिखरे निशानी में रहे।
छोकरापन नहीं ठीक झंगरळया हो गए
हम पुराने हुए पुरानी में रहें।
जुबां ज्यूंद्याल नहीं, जो फेंको दो मुट्ठियां भर
अखंड मोतिम है जुबां, जुबानी में रहें।
वक्त वादियां हैं, दूर निकल जाती हैं,
रवाँ में ही फायदा, रवानी में रहें ।
छोड़ दें देह की अकड़ सकड़ *अडिग*,
दिल कहता है जवां है तो जवानी में रहें।
अर्थ :-
झंगरळया- आधा सफेदी वाले बाल
ज्यूंद्याल - पूजा के अभिमंत्रित चांवल
मोतिम - वचन, वाणी
*@ बलबीर राणा 'अडिग'*
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