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मंगलवार, 2 मई 2023

गजल


यूँ खामखाँ सूदों किसी को टोका न जाए,

करने दो, जो कर रहा है रोका न जाए।

 

हवा कब रुख बदल दे कहना है मुश्किल

औरों की पुरवाई पर फैसला लिया न जाए।

 

छुवीं ऐसी न लगे कि चिंगारी बडांग बने,

फिर पूरे गाँव को जद से बचाया न जाए।

 

वजह के लिए उलझना हो तो उलझो,

बेवजह फंसने के लिए उलझा न जाए।

 

अंदर ही पकाओ खिचड़ी कच्ची-पकी जो भी  है,

घर का रस्वाड़ा चौराहे पर चढ़ाया न जाए।

 

सीख रहे हो तो किनारे पर ही उतरो  

सीखने के लिए गहराई में कूदा न जाए। 

 

सुसल से सागर भी पार हो जाता है अडिग

कुसल का हल किसी को सुझाया न जाए।

 

गढ़वाली शब्दों का अर्थ

 

छुवीं – बातचीत

बडांग - बनाग्नि

रस्वाड़ा- रसोई

सुसल - अच्छी तरकीब ढंग

कुसल - खराब तरकीब

 

@ बलबीर राणा अडिग

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