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मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

नखरु


जला दिया गया है

नखरु का पुतला

पुतला जलाने को ही बनता है

असली तो ठहाका मार रहा है

देखो खुद के अंदर 

किसी न किसी

अमर्यादित चलन 

दुर्गण, विकृति रूप में 

जो जानता तो है 

लेकिन मानता नहीं

बाहर राममय

अंदर रावण से भी नखरु

सायद वो नखरुपन

उस विद्वान के

अंदर नहीं था।


नखरु - बुरा


©® बलबीर राणा 'अडिग'


अंदर अगर किसी रूप में रावण हो तो उसका दहन हो इसी कामना के साथ विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं मर्यादा पुरुष भगवान राम की कृपा बनी रहे।

जय सियाराम 🙏🙏🙏

शनिवार, 14 अक्टूबर 2023

वचन


उसके हिस्से की

खुशियों को भी सहेजना पड़ता है मुझे 

बॉर्डर पर 

कि जब कभी छुट्टी पर होऊँ 

तो हाथ बाँट लूँगा उसका 

रोटी-सब्जी

साग-भात

झाडू-पौछा

कपड़े छपोड़ना

बच्चों को तैयार करना

उगैरा उगैरा 

क्योंकि अकसर

उसके हर रोज  

एक ही काम की दिक

सुनाई देती है फोन पर।


मेरा भी एक ही जैसा काम है

दिन रात का 

बंदूक पकड़ ड्यूटी देना

जमीनी निशानों द्वारा चिन्हित 

काल्पनिक रेखा

के पार के लोगों पर नजर रखना

जो कोई उधर से रेखा लांघे

उस पर गोली चलाना 

पीटी करना

ताकि आगमी युद्ध के लिए फिट रहूँ

उगैरा उगैरा।


मुझे भी दिक होती होगी 

पर निकाल नहीं सकता

वचन बद्ध जो हूँ

वचन दिया है

बच्चों की माता को 

प्रेम करने का खुश रखने का

भारत माता को

दुश्मन के पग ना पड़ने देने का।


©® बलबीर राणा 'अडिग'

सोमवार, 2 अक्टूबर 2023

योद्धा गाथा



प्रहरी हैं वे प्रखर प्रवीण, मानते नहीं कभी भी हार,
मर भूमि के सूरमाओं का, शूरत्व का नहीं पारावार, 
अनन्यहृत रहे देश मेरा, रहती सैनिक अभिलाषा है,
नाम नमक निशान पर मिटना, सैनिक की परिभाषा है।


असंभव को संभव करना, जिनकी फितरत में होता,
आदेश जिनके अराध्य हों, फिर कैसे कुछ असाध्य होता,
अगम दुर्गम सरजमीं पे जो, हर पहर निगहबानी करते हैं,
त्याग सर्मपण दृढ़ता से, हर लक्ष्य का भेदन करते हैं।


हो विषम विकट संताप हजार, हो गिरी श्रृंगों की शीत कटार,
हो छदम युद्ध की जटिलता, या हो तपता उखम मरु थार,
कँकाल क्लिफ रणभूमि में भी, अरि पर कहर बरपाते हैं, 
तिरंगा फहराने के संग-संग, तिरंगे में लिपटके भी आते हैं।


पौरुष ना उनका भय खाता, नहीं भयभीत पुरुषार्थ होता,
अरि अक्षि संधान पर भी, राष्ट्र रक्षार्थ प्राराब्ध ना छूटता,
गृहस्थ खेवनहार होते भी, समग्र साधना सन्यासी हैं,
हुतात्मा हैं मातरे वतन के, अटल अमिट अविनाशी हैं ।

विरह वेदना अपनों की, अधीर व्याकुल करती होगी,
संसारिक आमोद प्रमोद को, भावनाएं उमड़ती होगी,
पर गीता में हाथ रखकर, प्रण सौगंध जो लिया होता,
परिणीता प्रणय से पहले, प्रणय भारत माता से होता।

हर समय तत्पर रहते, दुश्मन का दर्प मिटाने को,
संकुचाते नहीं ये वर्दी वाले, बली वेदी चढ़ जाने को,
जय घोष जय भारत चिंघाड़ते, रिपु माथे चढ़ जाते हैं
जब भी मिले विराम समर में, वन्दे मातरम गाते हैं।



©® बलबीर राणा 'अडिग'












रविवार, 1 अक्टूबर 2023

हाथ बांधो मत बढ़ाया करो


हाथ बांधो मत बढ़ाया करो,
श्रद्धा से कुछ चढ़ाया करो।

जिगर में जान होनी चाहिए,
फिर जो चाहो मढ़ाया करो।

श्री गणेश तो करो श्री मिलेगी
यूँ श्रीमान से न कतराया करो।

उन्नीस-बीस चलता है पर,
सौ का सौ न पचाया करो ।

बात करनी है तो सुल्टी करो,
उल्टी पट्टी न पढ़ाया करो।

प्रशंसा उतनी अच्छी जितना है
चने के झाड़ में न चढ़ाया करो।

©® बलबीर राणा 'अडिग'