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बुधवार, 9 जुलाई 2014

अकेले सघन में छोड़ ना जाना


बिन तेरे सूना ये चमन
अधूरा जीवन अधूरा मन
आखरी पड़ाव तक साथ निभाना
अकेले सघन में छोड़ न जाना।

दो दिनी घरोंदे हैं ना जाने कब अतीती आ जाए
सप्त रंगों से सुसज्जित पंखो को काट जाए
तन्हा बस में भी नहीं यह सफरनामा
अकेले सघन में छोड़ न जाना।

नृत्य देखने को आतुर जग क्या जाने दर्द परिंदों का
इन पगों ने कितने कंटकी राहों में रियाज किया
लाख जतन से मिला सुमन चेहरा अब ना मुंह मोड़ जाना
अकेले सघन में छोड़ न जाना।

@ सर्वाधिकार सुरक्षित

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