धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
Pages
▼
बुधवार, 10 सितंबर 2014
पहली जिज्ञांसा
पहली जिज्ञासा
आज भी पहली
कुछ बदला नहीं
अहसास ऊँचे उठे
मन का रंग गहरा
मंत्रणा गंभीर
चित चंचलता दीर्घ
चपलता वही
बदला तो केवल
बंधन....
जिसके कदम रस्म से चल कर
आज
अटूट कर्म यज्ञ तक पहुंचे।
@ बलबीर राणा अडिग
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें