धरा पर जीवन संघर्ष के लिए है आराम यहाँ से विदा होने के बाद न चाहते हुए भी करना पड़ेगा इसलिए सोचो मत लगे रहो, जितनी देह घिसेगी उतनी चमक आएगी, संचय होगा, और यही निधि होगी जिसे हम छोडके जायेंगे।
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बुधवार, 25 सितंबर 2019
रिश्ते
इस आश पे रोज पैरों को निकलता हूँ
कि नाप सकूं फासले रिश्तों के इस जहाँ में
पर ठिठक जातें कदम उन खाईयों देख
जिनके मिजाज खुद में बहुत गहरे हैं।
बहुत ही सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक अभिनन्दन आदरणीया
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