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गुरुवार, 31 जुलाई 2014

एक तम

अर्ज तो की थी सृश्ठी कर्ता से
कि!!
बचा ले अपनी कृति को
लेकिन वे भी
विबस  दिखीं ...
प्रकृति के प्रकोप से,
फिर!!
विज्ञान की विभत्स रचना
क्यों ???
दंम्भ भर रही...
अनुचित भार वहन करना
किसी को नहीं भाता
फिर जीवन गुरु
प्रकृति क्यों ढोती जायेगी ??
............बलबीर राणा "अडिग"

बुधवार, 30 जुलाई 2014

अंतर्कलह

दामन दमक रहा है
आँगन चमक रहा है
भौतिक संसाधनो का रौब है
लेकिन
प्रेम धागा
कमजोर
मानव वृति
खिंच रही
अपने वजूद के लिए
रिश्तों ने
औपचारिकता का दामन थाम लिया
और
मैं
मैं ही गर्दन उठाता नजर आता .....

© सर्वाधिकार सुरक्षित

बुधवार, 9 जुलाई 2014

अहसास

Photo: शुभ अपराहन स्नेही मित्रो
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पहली जिज्ञासा
आज भी पहली 
कुछ बदला नहीं 
अहसास ऊँचे उठे
मन का रंग गहरा 
मंत्रणा गंभीर 
चित चंचलता दीर्घ 
चपलता वही 
बदला तो केवल  
बंधन....
जिसके कदम रस्म से चल कर
आज 
अटूट कर्म यज्ञ तक पहुंचे।

@ बलबीर राणा " अडिग"

पहली जिज्ञासा
आज भी पहली
कुछ बदला नहीं
अहसास ऊँचे उठे
मन का रंग गहरा
मंत्रणा गंभीर
चित चंचलता दीर्घ
चपलता वही
बदला तो केवल
बंधन....
जिसके कदम रस्म से चल कर
आज !
अटूट कर्म यज्ञ तक पहुंचे।

@ बलबीर राणा " अडिग"

वो कलाकार कहाँ होंगे

प्रीत डोर से बाँधने वाले मेरे 
वो आंचलिक गीत कहाँ होंगे,
दिल के तार झंकृत करने वाले वो सुर कहाँ होंगे,
अब कन फोडू भोंडे वाद्ययों संग विह्वड़े शोर से उचट जा रहा मन,
एक थाप से थिरकाने वाले वो कलाकार कहाँ होंगे।
@ बलबीर राणा "अडिग"

ख्वायिस

जन्नत की ख्वायिस ले चला था
लेकिन यहाँ तो भहसियों की पट पड़ी है
घटाएं देख झूम रहा था वो चातक
लेकिन वह धुवें की लकीर मरघट से चडी थी




@ बलबीर राणा "अडिग'

अकेले सघन में छोड़ ना जाना


बिन तेरे सूना ये चमन
अधूरा जीवन अधूरा मन
आखरी पड़ाव तक साथ निभाना
अकेले सघन में छोड़ न जाना।

दो दिनी घरोंदे हैं ना जाने कब अतीती आ जाए
सप्त रंगों से सुसज्जित पंखो को काट जाए
तन्हा बस में भी नहीं यह सफरनामा
अकेले सघन में छोड़ न जाना।

नृत्य देखने को आतुर जग क्या जाने दर्द परिंदों का
इन पगों ने कितने कंटकी राहों में रियाज किया
लाख जतन से मिला सुमन चेहरा अब ना मुंह मोड़ जाना
अकेले सघन में छोड़ न जाना।

@ सर्वाधिकार सुरक्षित

राहों का भ्रम जाल

ठिकाने कब तक बदलेगा रे मन
क्षणिक ठोर लेते जा
जीवन के हर पड़ाव पर
घडी दो घडी आश्रय ले जरा
समय की चाल गतिवान सदा
कुछ पल जीने को संचय करा
क्षीण हो गयी देह इस यायावरी चलन से
राहों के भ्रम जाल से निकल जरा
@ बलबीर राणा "अडिग"

बुधवार, 2 जुलाई 2014

जीवन का एक सितारा


जीवन का एक सितारा
अंतस के तम से हारा
निराशाओं के भंवर में डूबा
आशाओं के हाथ से टूटा

अम्बर के हजार सितारे
हर रात टूटते वे प्यारे
अम्बर कभी ना शोक करे
नित नयें सितारों संग जगे

जो जाग गया वो पा गया
जो सो गया वो हार गया
आज भरा कल रीता
जो बीता वो जीता।

जीवन की रीत रही
उषा के लिए निशा जगी
हार गया जो छोड़ गया
जीत गया जो पकड़ गया

@ सर्वाधिकार सुरक्षित