हर वर्ष सन्देश देता दशहरा
छंटेगा तम का अंधड़ घनेरा
सत्य की विजय अधम पर होय
सुपथ पर उगे नयां पावन सबेरा।
धैर्य न व्याकुल हो धीर दे सहारा
मर्यादा पर विश्वास बड़े तेरा
मीठे सरोवर में जीवन नहाये
न रहे कोई जलज धरा पे खारा
हर वर्ष .......
पुतले संग राख ख़ाक हो अहम सारा
अंतस में रावण फिर न बना रहे कारा
बाहर-बाहर गीत राम के गुंजित न हो
ज्यु भीतर भी बने पुरुषोत्तम का बसेरा
हर वर्ष...........
सर्व सम्भाव पल्लवित हो चितेरा
बगिया में कुसुम् लताएँ बनाये घेरा
उगने न पाये काँटे जात-पात के
भय हीन निर्भय हो जीवन हमेरा।
हर वर्ष.........
दंभ अभिमान पर वार हो सदा
सत वाणों से तरकश हो भरा
छेदन हो क्रोध कपट कटुता का
अडिग कल्पना का हो यह संसारा
हर वर्ष सन्देश देता दशहरा ।
ज्यु = जिगर, दिल
रचना:- बलबीर राणा 'अडिग'
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