रविवार, 20 जनवरी 2013

एक तु ही सच्चा तेरा नाम सच्चा


एक तु ही सच्चा तेरा नाम सच्चा
अब तेरे सिवा कहीं मन नहीं लगता
मेरी विनती सुन ले भगवन
अपने चरण में शरण ले ले भगवन

सुख की चाह में दर दर भटका
धरती के कोने कोने छान मारा
नहीं मिली जीवन की खेवन हार नय्या
एक तेरा ही द्वारा जहॉं केवट दिखाता
यहीं लगेगी नय्या पार भगवन
एक तु ही सच्चा...................

ये जीवन मायाजाल में है फंसा
झूटे मोह के तालब में तन मन धंसा
इस माया नगरी से कैसे पांव निकले
सभी तो हैं इस रसातल में ढूबे
कोई नहीं हाथ पकडने वाला
तु ही हाथ पकडदे भगवन तु ही यहां से निकाल दे भगवन
एक तु ही सच्चा...................

इस मनुष्य योनि मे आकर क्या किया
पशु भांति अपने लिए ही जिया
लिप्सा के अंधकूप में झपटाता पकडता रहा
झूटे सपनो में बेसुद्ध होकर सोया
सच्चायी में जब आँख खुली तेरा ही द्वार पाया भगवन
एक तु ही सच्चा ..................

अपने पराये के भेद में भिदता रहा
भले बुरे को पहचान ना पाया
नश्वर दुनिया की दौड में दोडता रहा
मंजिल का कहीं अन्त ना पाया
जिसे देखा वही अतृप्त प्यासा पाया
अब तृप्ति तेरे चरणों के अमृत में ही भगवन
एक तु ही सच्चा ............

05 जनवरी 2013

कोई टिप्पणी नहीं: