रंग-बिरंगी होली आयी,
प्यार-मुहब्बत का
पैगाम लायी,
रंग दो तन मन एक
दूजे का,
भर लो अपनी प्रेम
पिचकारी।
कितना अनोखा त्यौहार
अपना,
कितना सुन्दर
विधान अपना,
सजा दो आँगन
सतरंगो से अपना,
भर दो थाल गुलाला
से अपना।
बुझा दो मन से
नफरत की चिंगारी,
जला दो दिल में
लो प्रेम की प्यारी,
अपने-पराये का
भेद मिटा दो,
धर्म-जाती की
दीवारें ढहा दो।
इतना रंगों एक
दूजे को,
पहचान न एक दूजे
की रहे,
एक मय बन जाए हम सब,
जिगर के तार
यूँही जुड़े रहें।
फूहड़ न बना देना
इस प्रेम पर्व को,
मर्यादा इसकी बचा
के रखना,
जला न देना
आधुनिकता की ज्वाला से इसे,
सुन्दरता इसकी
बचा के रखना।
महारंगो के इस महोत्सव
को,
सुखी पलों की धरोहर
बना के रखना,
जब भी जीवन में
एक दूजे से मिले,
दिल से फिर प्रेम
पिचकारी फूटे।
बलबीर राणा “अडिग”
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