कृष्ण पूर्णांश
उन्मुक्त जीवन
तृष्णा विहीन
स्वच्छंद
जहाँ चाह वहां राह
सम्पूर्ण सन्दर्भ से गर्वित
सम्पूर्ण कलाओं का कलाकार
सम्पूर्ण अवतार
भोगी - योगी
प्रेम करुणामयी
अहिंसक चित
पर
हिंसा के दनावल उतरता तत्पर
एक हाथ माया की मुरली
दुसरे हाथ सुदर्शन
दो विपरीत धाराओं में उर्जा
नियोजन
विपरीत क्रियाओं का समायोजन
इस लिए
कृष्ण अंश नहीं
पूर्णांश
सम्पूर्ण अवतार ....
© सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना :- बलबीर राणा “अडिग”
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